रामनाम की औषधि खरी नियत से खाय।
राम नाम की बड़ी अद्भुत महिमा है। बस, जरूरत है तो केवल श्रद्धा, विश्वास और भक्ति की, राम नाम स्वयं ज्योति है, स्वयं मणि है। राम नाम के महामंत्र को जपने में किसी विधि विधान या समय का बंधन नहीं है। एक बार ही नाम का उच्चारण करने से अनन्त कोटि पापों का और भवरोग का नाश हो जाता है।
बटु बिस्वास अचल निज धरमा। तीरथराज समाज सुकरमा॥
सबहि सुलभ सब दिन सब देसा। सेवत सादर समन कलेसा॥
सभी को अपने अपने धर्म में जो अटल विश्वास करना ही अक्षयवट है और शुभ कर्म ही उस तीर्थराज का समाज है। वह सब देशों में, सब समय सभी को सहज ही में प्राप्त हो सकता है और आदरपूर्वक सेवन करने से क्लेशों को नष्ट करने वाला है। राम नाम की महिमा तो ये है की सदाशिव भोले शंकर भी राम नाम का हर प्रहर जपते रहते हैं।वास्तव में संसार चल ही राम नाम से रहा है। सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, वायु सभी में जो शक्ति है वो सब राम नाम की है। (जिसका कभी (क्षय=नाश) न हो, (जिसे कभी नष्ट न किया जा सके। इसीलिए इस वृक्ष को अक्षय वट कहते हैं)
राम, कृष्ण, शिव, राधे या अन्य कोई भी नाम जो भी नाम आपको प्रिय लगे उसी को पकड़ लो तो बेडा पार हो जायेगा । (सूत्र) नाम में भेद (छोट बड़ा) करना नाम – अपराध है, हम सभी यही प्रयास करे की हमारे द्वारा कभी नाम अपराध न हो। महराज शास्त्रों में नाम-अपराध भी दस तरह के है अतः इससे बचा जाए।
को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू॥
श्रीरामरक्षास्त्रोत्रम्
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥
भगवान शिव ने कहा, हे पार्वती ! मैं निरंतर राम नाम के पवित्र नाम का जप करता हूँ, और इस दिव्य ध्वनि में आनंद लेता हूँ । रामचन्द्र का यह पवित्र नाम भगवान विष्णु के एक हजार पवित्र नामों (विष्णुसहस्त्रनाम) के तुल्य है। बृहन्नार्दीय पुराण में आता है।
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलं|
कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा||
कलियुग में केवल हरिनाम, और हरिनाम से ही उद्धार हो सकता है। हरिनाम के अलावा कलियुग में उद्धार का अन्य कोई भी उपाय नहीं है। नाम की महिमा हर युग में महान रही है चाहे नाम प्रह्लाद ने लिया हो चाहे शबरी ने या द्रौपदी सुदामा ने या तुलसी कितने ही भक्तों ने नाम को सहारा लेकर अपनी नैया को पार लगाया है। इसके जाप मात्र से ही मनुष्य अपनी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। जो मनुष्य भौतिक सुख सुविधाओं में लीन होकर ईश्वर को भूल जाता है। उसको अंत में पछताना पड़ता है।
कलयुग केवल नाम अधारा । सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा ।।
कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना। एक अधार राम गुन गाना॥
लक्ष्मण जी हे निषादराज- रामजी के स्वरुप बताते है कि राम जी जीव नहीं है राम जी ब्रह्म है पर सब कोई नहीं जानते (अनूपा=रामजी के समान दूसरा है ही नहीं ) (अबिगत=जो जाना न जाए, अर्थात मन एवं इन्द्रियों से परे) (अलख=लखाया या देखा न जा सके,साधारण द्रष्टि देखने में असमर्थ) (अनादि=आदि और अंत से रहित) (गतभेदा=सर्वगत अर्थात सब कुछ जानते है )
राम ब्रह्म परमारथ रूपा। अबिगत अलख अनादि अनूपा।।
सकल बिकार रहित गतभेदा। कहि नित नेति निरूपहिं बेदा।
चिदानंदमय देह तुम्हारी। बिगत बिकार जान अधिकारी॥
अर्थात्: ब्रह्म ने ही परमार्थ के लिए राम रूप लिया।
राम नाम को सुमरिवो ,तुलसी वृथा ना जाय।
लरकाई को तेरवो ,आगे होत सहाय।।
जो आनंद सिंधु सुखरासी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी।।
सो सुख धाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक बिश्रामा।।
जो आनंद के समुद्र और सुख की खान हैं, जिस (आनंदसिंधु) के एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं, उन का नाम ‘राम’ है, राम नाम सुख का भवन और सम्पूर्ण लोकों को शांति देने वाला है।(आनंदसिंधु= आनंद का सागर )
बंदउ नाम राम रघुबर को।हेतु कृसानु भानु हिमकर को।।
तुलसी-मैं रधुनाथ जी के नाम राम की वंदना करता हूं (रघु=जीव वर=पति) रघुबर संसार के सभी जीवों के पति अर्थात परमात्मा है राम नाम जो अग्नि सूर्य और चन्द्रमा की उत्पत्ति अर्थात इन तीनों का जन्म दाता है अर्थात हेतु है। कृशानु में र है, भानु में आ और हिमकर में र और म दोनों शामिल हैं। संसार में अग्नि सूर्य और चन्द्रमा परम ज्योतिमान है अर्थात राम नाम के तेज से ही तीनों तेजस्वी हुए, नाम के एक एक अक्षर से इन्होंने तेज पाया पर महराज सम्पूर्ण नाम का तेज तो किसी में भी नहीं है इसी क्रम में रूद्र, ब्रह्मा, विष्णु जी है अतः राम से ही त्रिदेव की उत्पत्ति हुई है। (कृशानु=अग्नि) (भानु =सूर्य) (हिमकर= चन्द्रमा)
जान आदिकबि नाम प्रतापू। भयउ सुद्ध करि उलटा जापू ।।
उल्टा नाम जपत जग जाना।वाल्मीकि भये ब्रह्म समाना।।
बाल्मीक के जाप का निकला यह परिणाम।
बस श्राद्ध होनी चाहिए मारा कहो या राम।।
अनादि कवि भगवान शंकर है, आदीकवि वाल्मीकि जी है, और कलयुग के कवि बाबा तुलसी है ये तीनों ही राम नाम के प्रताप को जानते हैं, जो उलटा नाम (मरा-मरा) जपकर ही महान संत ओर कवि बन गये।
भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥
नामु राम को कलपतरु, कलि कल्यान निवासु।
जो सुमिरत भयो भांग तें, तुलसी तुलसीदासु॥
अच्छे भाव (प्रेम) से, बुरे भाव (वैर) से, क्रोध से या आलस्य से, किसी तरह से भी नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होता है। (अनख= नाराज़गी, क्रोध,ग्लानि) (कलपतरु= कल्पवृक्ष=इच्छा पूरी करने वाला वृक्ष)
नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को॥
राम नाम के रहस्य को शिवजी भली भाँति जानते हैं, जिसके (प्रभाव) के कारण जहर ने उनको अमृत का फल दिया। (नीक=अच्छा, भला, अनुकूल) (अमि= अमृत) (कालकूट=जहर)
इसलिए सर्व समर्थ महेश जी भी राम नाम का जाप करते है और अन्य को उपदेश भी देते है शिव जी परम वैष्णव है।
महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू।।
महिमा जासु जान गनराउ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ।।
जिन्ह कर नामु लेत जग माहीं। सकल अमंगल मूल नसाहीं।।
जिनका नाम लेते ही जगत में सारे अमंगलों की जड़ कट जाती है।
राम नाम कर अमित प्रभावा। संत पुरान उपनिषद गावा।।
कबीर से किसी ने पूछा कि आप जिस राम नाम की पूजा करते हैं, वह हमें भी बताएं। कबीर बोले-
है कोई राम नाम बतावै, बस्तु अगोचर मोहि लखावै।
राम नाम सब कोई बखानैं, राम नाम का मरम न जानैं।।
राम नाम रहस्य की बात है। इसकी बात तो सब करते हैं लेकिन इसका भेद कोई विरला जानता है। यह राम नाम ऊपर-ऊपर का नहीं है। यह वह नाम है जिसकी स्मृति से, जिसके सुमिरन से आनन्द का अनुभव हो-
ऊपर की मोहिं बात न भावै, देखै गावै तो सुख पावै।
यदि राम नाम आनन्ददायी न हो तो फिर उसका कोई अर्थ नहीं।
जासु नाम सुमरत एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा।।
एक बार जिनका नाम स्मरण करते ही मनुष्य अपार भव सागर के पार उतर जाते हैं जब बन्दरों ने हनुमानजी से पूछा कि समुद्र तट से आपको भय रंचमात्र नहीं लगा इसका क्या कारण है, तो उन्होंने जवाब दिया कि मुझे यह स्मरण हो आया कि-
जासु नाम सुमिरत एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा।
और भगवान द्वारा प्रदत्त रामनाम की मुद्रिका मेरे मुख में थी ही, फिर भला समुद्र पार करने में क्या कठिनाई होगी। वस्तुतः यह मेरा चमत्कार नहीं अपितु यह तो भगवन्नाम का ही चमत्कार है।कि मैं पार हो गया।
जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी।।
जिनका नाम जपकर ज्ञानी (विवेकी) मनुष्य संसार (जन्म-मरण) के बंधन को काट डालते हैं।
नारद जानेउ नाम प्रतापू। जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू॥
नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू। भगत सिरोमनि भे प्रहलादू॥
नारदजी ने नाम के प्रताप को जाना है। हरि सारे संसार को प्यारे हैं,क्योंकि हरि को हर प्यारे हैं और नारदजी आप तो हरि और हर दोनों को प्रिय हैं। नाम के जपने से प्रभु ने कृपा की, जिससे प्रह्लाद, भक्त शिरोमणि हो गए।(हरि= विष्णु ) (हर= शंकर)
जपहु जाइ संकर सत नामा। होइहि हृदयँ तुरंत बिश्रामा।।
रामजी ने स्वयं कहा-नारद जी आप जाकर शिवजी के शिवशतनाम का जप कीजिये, इससे आपके हृदय में तुरंत शांति होगी।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
संकट से घबराए हुए आर्त (दुखी) भक्त नाम जप करते हैं, तो उनके बड़े भारी बुरे-बुरे संकट मिट जाते हैं और वे सुखी हो जाते हैं।(आर्त= दुखी)
नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला।।
ऐसे कराल (कलियुग के) काल में तो नाम ही कल्पवृक्ष है, जो स्मरण करते ही संसार के सब जंजालों को नाश कर देने वाला है। (कल्पवृक्ष= इच्छा पूरी करनेवाला वृक्ष) (अभिमत= अनुकूल, मनचाहा)
राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता।।
कलियुग में श्री राम का नाम मनोवाँछित फल देने वाला है, परलोक में परम हितैषी और राम का नाम तो इस लोक में माता-पिता के समान है।
कलियुग केवल राम अधारा।सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा।
संत जन कहते है कि कलियुग में भगवान का अवतरण होता है ‘नाम’ के रूप में। कलियुग में जो युग-धर्म है वह है नाम संकीर्तन। भगवान चैतन्य महाप्रभु ने भी कहा है कि कलियुग में केवल हरिनाम ही हमारा उद्धार कर सकता है। इसके अलावा किसी भी अन्य साधना से सद्गति नहीं है। यही बात नानक देव ने भी कही है।
नानक दुखिया सब संसार, ओही सुखिया जो नामाधार।
मानस में भी यही लिखा है, कलियुग केवल नाम आधारा। किसी भी संत के पास चले जाओ, किसी भी शास्त्र को उठाओ, सब यही इंगित करते हैं कि कलियुग में भगवान का अवतरण उनके नाम के रूप में हुआ है। इसी से उद्धार होगा।
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू।।
संत जन कहते है इस कलियुग में न कर्म है ,न भक्ति है (जो भक्ति है भी वह व्यभिचारिणी हो चुकी है )और न ही ज्ञान है। कहते हैं पहले मन्त्र आया फिर तंत्र और अब सिर्फ षड्यंत्र ही रह गया है। ऐसे कपटपूर्ण माहौल में राम नाम ही एक आधार है। (अवलंबन= सहारा लेना,अपनाना)
भृकुटि विलास सृष्टि लय होई।
जिसके (भृकुटि विलास= भौंहों के घुमाने) मात्र से प्रलय हो सकता है, उसके नाम की महिमा का वर्णन हम और आप क्या कर सकेंगे?
थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई। सुनहु तात मति मन चित लाई॥