ga('create', 'UA-XXXXX-Y', 'auto'); ga('send', 'pageview'); रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥ - manaschintan

रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥

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रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥
रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥

रचि महेस निज मानस राखा।

तुलसी ने मानस सरोवर की तुलना सामान्य सरोवर से कि है जैसे तलाब में प्रायः चार घाट होते है तीन घाट में सीड़ी होती है और चौथा घाट सपाट होता था क्योंकि पशु भी तो सरोवर में आते है तुलसी के मानस सरोवर में तीन घाट ज्ञान ,कर्म ,भक्ति और चौथा घाट ,शरणागति का है बाबा तुलसी को यहीं घाट उत्तम लगा क्योंकि इस रास्ते से सरोवर में अपनी सुविधा से चढ़ उतर सकते है जब  तुलसी जैसे संत ने अपने में  ज्ञान ,कर्म ,भक्ति का अभाव बताया है (सूत्र) हम सभी को चेक करना चाहिए क्या हमारी सोच तुलसी बाबा जैसी है। जिस प्रकार सरोवर में चार घाट होते है बाबा तुलसी के मानस में चार घाट का आशय चार संवाद से है।


(क) शिव का पार्वती के साथ संवाद जिसे ज्ञान घाट कहा गया है।यह संवाद स्थल कैलास पर्वत है 

परम रम्य गिरिबरु कैलासू। सदा जहाँ सिव उमा निवासू।। 

(1) कागभुशुण्डि का गरूड़ जी के साथ संवाद जिसे उपासना घाट कहा गया है। यह संवाद स्थल नीलगिरि पर्वत है। (सुसील=सीधा ,सरल)

उत्तर दिसि सुंदर गिरि नीला। तहँ रह काकभुसुंडि सुसीला।।
गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुण्डा। मति अकुंठ हरि भगति अखंडा॥

(2) याज्ञवल्क्य जी का भारद्वाज जी के साथ संवाद को मानस में कर्म घाट कहा गया है। यह संवाद स्थल प्रयाग है

भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुरागा॥
माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥
जागबलिक मुनि परम बिबेकी। भरद्वाज राखे पद टेकी॥

 

(3) तुलसीदास का स्वयं के मन को दीनता के भाव से कहा-पर बाबा तुलसी की राम कथा का स्थल सर्वत्र है। (तीर्थराज=प्रयाग) (जंगम=चलता फिरता)

मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं। तीरथ सकल जहाँ चलि आवहिं॥

कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई। सादर सुनहु सुजन मन लाई॥

यह शरणागति घाट मार्ग है (सूत्र) आज के समय में  राम को प्राप्त करने का इससे सरल उपाय कुछ है भी नहीं, क्योंकि जब तुलसी बाबा जैसा संत स्वयं अपने को अयोग्य बता रहा है तो हम तुम किस गिनती में है?

प्रभु हम भी शरणागत हैं,स्वीकार करो तो जाने।
अब हमे पतित से पावन ,सरकार करो तो जाने।।

मानस के चारों संवाद में चार कल्प की रामकथा है। संवाद दो पक्ष में होता है जिज्ञासु प्रश्न करते है (विज्ञ=जानकार,बुद्धिमान, समझदार)समाधान करते है।चारों जिज्ञासु का उद्देश्य केवल और केवल एक ही है राम को जानना (राम कवन मैं पूछव तोही) है। और जिस प्रकार सरोवर के जल को चारों घाटों के माध्यम से प्राप्त कर सकते है। जिस तरह जल (कम या अधिक मात्रा) में सभी जीव को जरूरी है (सूत्र) ऐसे ही सर्व शक्ति मान परमात्मा जिसका नाम कुछ भी हो सकता है सभी को जरूरी है। हाँ परमात्मा के अस्तित्व को मानने में समय जरूर लग सकता है

गोस्वामी जी अपने मन को कथा सुनाते है आधार संत समाज याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद का लेते है और जब याज्ञवल्क्य जी कथा सुनाते है तो शिव पार्वती संवाद का आधार लेते है और जब शिव जी माता पार्वती को कथा सुनाते है तो कागभुशुण्डि गरूड़ संवाद को आधार लेते है।

मानस में गोस्वामी जी ने चार कल्प की कथा को एक साथ पिरोया है। कहने का अर्थ जो जैसा पाना चाहे पा सकता है सरोवर का जल तो सभी को सुलभ होता है। उसी प्रकार मानस रूपी सरोवर में राम रूपी शीतल पावन जल को पाने का अर्थात राम को जानने समझने के लिए चार संवा है। (जिसे चार घाट कहा गया है)

ये चार घाट की का अपना अपना अलग अलग रास्ता है ये सभी रास्ते हमें राम को पाने का मार्ग बताते है। ज्ञान प्राप्ति के माध्यम से, कर्मरत रहकर, उपासना द्वारा या फिर दीन भाव से याचक बनकर। रामजी को आप जैसे पाना चाहे पा सकते है राम तो सर्व व्यापी है।

रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥

रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥

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