तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें।
भगवान रामजी का विभीषणजी के माध्यम हम सभी को दिव्य संदेश रामजी ने कहा- मनुष्य की ममता नौ जगह रहती है, माता, पिता, भाई, पुत्र, स्त्री, शरीर, धन, घर, मित्र और परिवार में, जहाँ जहाँ हमारा मन डूबता है वहाँ वहाँ हम डूब जाते हैं।
तजि मद मोह कपट छल नाना।करउँ सद्य तेहि साधु समाना॥
जननी जनक बंधु सुत दारा।तनु धनु भवन सुहृद परिवारा॥
सभी से ममता हटाकर प्रभु को ही प्रेम करना यही डोरी बटना है। क्योंकि ये सब के सब राम भक्ति के बाधक हैं, इन सबके ममत्व रूपी तागों को बटोरकर और उन सबकी एक डोरी बनाकर उसके द्वारा जो अपने मन को मेरे चरणों में बाँध देता है। अर्थात सारे सांसारिक संबंधों का केंद्र मुझे बना लेता है।
सब कै ममता ताग बटोरी।मम पद मनहि बाँध बरि डोरी॥
क्योंकि ये सब के सब रामभक्ति के बाधक हैं।
सुख संपति परिवार बड़ाई। सब परिहरि करिहउँ सेवकाई॥
ए सब राम भगति के बाधक। कहहिं संत तव पद अवराधक॥
भक्त का मन जब संसार के विषयों से हट जायेगा तब वह सभी में अपने प्रभु का दर्शन पाता है। तभी भक्त के मन में
सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥
समदरसी इच्छा कछु नाहीं।हरष सोक भय नहिं मन माहीं॥
अस सज्जन मम उर बस कैसें।लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें॥
सुनु लंकेस सकल गुन तोरें। तातें तुम्ह अतिसय प्रिय मोरें॥
ऐसा सज्जन मेरे हृदय में कैसे बसता है, जैसे लोभी के हृदय में धन बसा करता है। तुम सरीखे संत ही मुझे प्रिय हैं। मैं और किसी के निहोरे से (कृतज्ञतावश) देह धारण नहीं करता। ऐसे सन्त मुझे इतने प्रिय हैं कि मैं उनका दुख देख नहीं सकता, अतः उनकी रक्षा के लिए अवतार लेता हूँ।
भगवान् बोले ऐसे सज्जन से हनुमान जी भी हठपूर्वक मित्रता करते हैं।
एहि सन हठि करिहउँ पहिचानि।साधु ते होइ न कारज हानी।।
हनुमानजी कहते हैं सज्जन कौन है, जो बोलते, उठते, सोते, जागते हरि नाम लेता है, भगवान का सुमिरन करता है वह सज्जन हैं, सागर की तरह दूसरे को बढते हुए देख उमड़ता हो वो सज्जन हैं, जो सबकी ममता प्रभु से जोड दे, प्रभु के चरणों में छोड़ दे “सर्वधर्मान परित्यज्य मामेकं शरणंब्रज” वह सज्जन है।
करहुं सदा तिनकर रखवारी।जिमि बालक राखै महतारी।।
भगवान श्री रामजी ने नारद जी को कहा है – मैं सदा उनकी वैसे ही रखवाली करता हूँ, जैसे माता बालक की रक्षा करती है। बच्चे को माँ एक मिनिट भी दूर नहीं रखती उसी तरह भगवान भी जीव से दूर नहीं रहता हैं।
एक मात्र परमात्मा ही हैं जो हर विपत्ति व काल से भी रक्षा करने में समर्थ हैं। संसार में ऐसा कोई जन्मा ही नहीं जो किसी को सुखी कर सके या उसकी सदैव रक्षा कर सके। यदि रक्षा का बन्धन ही बांधना है तो एकमात्र परमात्मा से ही बांधे, जिसका तरीका स्वयं भगवान राम ने बताया और यदि एक बार बंधन परमात्मा से बंध गया, डोर लग गयी तो वही रक्षा करते है।
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