कह प्रभु ससि महुँ मेचकताई।
सुबेल पर्वत पर भगवान बैठे है राम जी को चन्द्रमा के कलंक को देखकर पुलस्त्य कुल में रावण का स्मरण हुआ। यह तो हनुमान जी ने भी रावण से कहा की ऋषि पुलस्त्यजी का यश निर्मल चंद्रमा के समान है। उस चंद्रमा में तुम कलंक न बनो। (विमल= स्वच्छ, निर्मल) (मयंक= चाँद, सुंदर) यथा
रिषि पुलस्ति जसु बिमल मयंका। तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका॥
कह प्रभु ससि महुँ मेचकताई। कहहु काह निज निज मति भाई॥
अब रामजी प्रश्न करते हैं कि चन्द्रमा में धूम कहाँ से आया ? चंद्रमा में जो काला दाग ये क्या है अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार कहो जिस भाँति रामजी ने पूछा उसी भाँति कलंक के विषय में अपना अपना मत कहते है, सभी अपने अपने मन की पीड़ा को बताते है। (मेचक= काले रंग का, काला) (धूम= धुआँ)
संत जन कहते है सुग्रीव ,विभीषण, अंगद ,प्रभु श्री रामजी,एवं हनुमान जी,सभी ने अपनी मन स्थिति के अनुरूप इसकी व्याख्या बताई है जिसके मन में जो चल रहा उसी के अनुसार व्याख्या करते है, कहने का भाव यह की जिसके मन में जो चल रहा होता है वैसी ही उसकी चित्त की वृत्ति भी हो जाती है, उसी के अनुसार वह बोलता है। उसका आधार (आप बीती, जग बीती)
जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी।।
कह सुग्रीव सुनहु रघुराई। ससि महुँ प्रगट भूमि कै झाँई॥
सुग्रीव ने कहा- हे रघुनाथजी! सुनिए! चंद्रमा में पृथ्वी की छाया दिखाई दे रही है। कहने का कारण पृथ्वी माने राज्य सुग्रीव का अपने भाई बाली से झगड़ा पृथ्वी के टुकड़े के लिए हुआ राज्य के लिए ही हुआ अतः सुग्रीव के मन में जो चल रहा है वही बोल रहा है।
मारेउ राहु ससिहि कह कोई। उर महँ परी स्यामता सोई॥
विभीषण ने कहा- चंद्रमा को राहु ने मारा था। वही (चोट का) काला दाग हृदय पर पड़ा हुआ है। विभीषण जी के कहने का कारण अभी अभी भाई से लात खा कर आया है जिसके मन में जो चल रहा है वही बोलता है विभीषणजी के मन में मार पीट का मेटर चल रहा है।
अब विभीषण कहते है राहु चन्द्रमा पर प्रहार करता है पौराणिक ग्रंथों में राहु एक असुर हुआ करता था। जिसने समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत की कुछ बूंदे पी ली थी। सूर्य और चंद्रमा को तुरंत इसकी भनक लगी और सूचना भगवान विष्णु को दी। इसके पश्चात अमृत गले से नीचे उतर गया और भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। इस कारण उसका सिर अमरता को प्राप्त हो गया जो राहू कहलाया, धड़ केतु बना।
कोउ कह जब बिधि रति मुख कीन्हा। सार भाग ससि कर हरि लीन्हा॥
अंगद ने कहा- जब ब्रह्मा ने (कामदेव की स्त्री) रति का मुख बनाया, तब उसने चंद्रमा का सार भाग निकाल लिया (जिससे रति का मुख तो परम सुंदर बन गया, परन्तु चंद्रमा के हृदय में छेद हो गया)। वही छेद चंद्रमा के हृदय में वर्तमान है, जिसकी वजह से आकाश की काली छाया उसमें दिखाई पड़ती है।
अंगद को पीड़ा राज्य की थी राजा का बेटा ही राजा होना चाहिए था राजा का भाई राजा नहीं होता, क्योकि किसी का हिस्सा किसी को दे देना ही अंगद की पीड़ा थी क्योंकि अभी हाल में भगवान ने बाली का वध करके किष्किंधा का राज्य सुग्रीव को दिया। (संजुत= संयुक्त) (निकर= झुंड, समूह जैसे रवि कर निकर) (गरल= विष)
सभी ने बोला प्रभु आपका क्या मत है।
प्रभु कह गरल बंधु ससि केरा। अति प्रिय निज उर दीन्ह बसेरा॥
बिष संजुत कर निकर पसारी। जारत बिरहवंत नर नारी॥
प्रभु श्री रामजी ने कहा- विष चंद्रमा का बहुत प्यारा भाई है,और जो अति प्रिय होता है। वह ही हृदय मे बसता है। इसी से चंद्रमा ने विष को अपने हृदय में स्थान दे रखा है। विषयुक्त अपने किरण समूह को फैलाकर वह वियोगी नर-नारियों को जलाता रहता है। राम जी के मन मे जानकी जी का विरह चल रहा है काला पन विष का है बहारआती किरण विरही को उदास कर देती है। चन्द्रमा रामजी को दाहक मालूम होता है। सभी ने बोला प्रभु सभी ने बोल दिया पर हनुमान जी से भी तो पूछो प्रभु के पूछने पर हनुमान जी बोले।
कह हनुमंत सुनहु प्रभु ससि तुम्हार प्रिय दास।
तव मूरति बिधु उर बसति सोइ स्यामता अभास॥
हनुमानजी परम भक्त है। सरकार के दासों पर हनुमान जी की सदा ही कृपा रहती है। अत चन्द्रमा के ऊपर लगाए गए आरोपो को सहन ना कर सके हनुमान जी ने कहा- हे प्रभो! सुनिए, चंद्रमा आपका प्रिय दास है। प्रभु, आपकी सुंदर-श्याम छवि उनके हृदय में बसती है। हनुमानजी के मन में सदैव श्रीराम की छवि बसती है, इसलिए उन्होंने रामजी की श्यामल छवि को ही चंद्रमा का कालापन बताया।और प्रभु शिवजी आपके परम प्रिय हैं। शिवजी चंद्रमा को मस्तक पर बसाये हैं। इस तरह भी यह दास ही है।पवनपुत्र हनुमान जी के वचन सुनकर सुजान श्री रामजी हँसे।
पवन तनय के बचन सुनि बिहँसे रामु सुजान।
दच्छिन दिसि अवलोकि प्रभु बोले कृपा निधान॥
संकेत यह है की है अपने हृदय में सदैव ऐसी बातें रखिए, जो आपको शांत करे और बाहर जो भी सुनें, देखें या समझें उसको भी प्रसन्नता से भर दे।
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