परहित,वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर। Leave a Comment परहित,वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर। Read More »
परहित बस जिन्ह के मन माहीं ।तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं ॥ Leave a Comment परहित बस जिन्ह के मन माहीं ।तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं ॥ Read More »