ga('create', 'UA-XXXXX-Y', 'auto'); ga('send', 'pageview'); जरा मरन दुख रहित तनु समर जितै जनि कोउ। एकछत्र रिपुहीन महि। - manaschintan

जरा मरन दुख रहित तनु समर जितै जनि कोउ। एकछत्र रिपुहीन महि।

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जरा मरन दुख रहित तनु समर जितै जनि कोउ। एकछत्र रिपुहीन महि।
जरा मरन दुख रहित तनु समर जितै जनि कोउ। एकछत्र रिपुहीन महि।

जरा मरन दुख रहित तनु समर जितै जनि कोउ।

प्रताप भानु के मुठी में तीनो के तीन धर्म अर्थ काम थे पर मोक्ष के लोभ ने ऐसा बर्बाद किया की रावण बनना पड़ा! प्रताप भानु जैसे सफल राजा को लोभ खा गया (सूत्र) लोभ साधना के क्षेत्र का अज़गर है। जिसके अंदर लोभ बैठा है वो चाहे कितनी भी साधना कर ले सब बेकार है ! गीता में कहा (लोभेन भक्ति नाशनम) रामायण में सोते दो लोगो को संतो द्वारा जगाया गया एक सुसेन बेद को हनुमान जैसे सच्चे संत ने उठया और दूसरे प्रताप भानु को कपटी मुनि ने (सूत्र) सच्चा संत ने सुसेन बेद को राम की सरन में पहुंचाया और कपटी मुनि ने प्रताप भानु को काम के पास महल में पहुंचाया।
प्रताप भानु का लोभ क्या है? और लोभ वश क्या मांग रहा है।मेरा शरीर वृद्धावस्था, मृत्यु और दुःख से रहित हो जाए, मुझे युद्ध में कोई जीत न सके और पृथ्वी पर मेरा सौ कल्प तक एकछत्र अकंटक राज्य हो।


जरा मरन दुख रहित तनु समर जितै जनि कोउ।
एकछत्र रिपुहीन महि राज कलप सत होउ।।

जबकि हानि, लाभ, जीवन ,मरन, जस, अपजस,ये छह सभी की सभी  विधाता के हाथ में है इन पर किसी का कोई जोर नहीं होता, (सूत्र) सत्य तो यही है कि इंसान के हाथ में कुछ है ही नहीं।

सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ॥

जनम मरन सब दुख सुख भोगा। हानि लाभु प्रिय मिलन बियोगा॥
काल करम बस होहिं गोसाईं। बरबस राति दिवस की नाईं॥

कपटी मुनि ने प्रतापभानु कहा-तप के बल से ब्राह्मण सदा बलवान हैं। उनके कोप से में रक्षा नही कर सकता । तुमने जो अजेयत्व माँगा है सो तो तभी सम्भव है जब तुम ब्राह्मणो को वश कर लो। तब दूसरे का कौन कहे त्रिदेव तुम्हारे वश हो जायँगे। और सब मेरे वरदान से हो जायगा। (बिधि=ब्रह्मा, व्यवस्था आदि का ढंग, प्रणाली,क़ानून) (बरिआरा=प्रबल ,बलवान)

तपबल बिप्र सदा बरिआरा। तिन्ह के कोप न कोउ रखवारा॥
जौं बिप्रन्ह बस करहु नरेसा। तौ तुअ बस बिधि बिष्नु महेसा॥

क्योकि भगवान ने स्वयं कबंध से कहा है! भाव कि गंदर्भ आदि देवताओं की ब्राह्रण अपमान से यह दशा हुई है, कबन्ध एक गन्धर्व था जो कि दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण राक्षस बन गया था। तब अन्य जीव किस गिनती मे हैं, इसी से जान लो कि  ब्राम्हण द्रोही हमको नहीं भाता।

सुनु गंधर्ब कहउँ मैं तोही। मोहि न सोहाइ ब्रह्मकुल द्रोही॥

जब नारद ने शाप दिया और कठोर वचन कहे,नारद ने पूछा कि यथा

मैं दुर्बचन कहे बहुतेरे। कह मुनि पाप मिटिहिं किमि मेरे॥

इस पर भगवान ने कहा नारद जी इसमें आपका कोई दोष नहीं है।

मृषा होउ मम श्राप कृपाला। मम इच्छा कह दीनदयाला॥

जब भृगु जी ने लात मारी भी भगवान ने भृगु  के चरण चिन्ह  आज दिन तक भगवान अपने वक्ष स्थल पर धारण किए है लात मारने पर उलटे उनके पैर दवाने लगे कि कही  चोट न लगी हो, मेरी छाती कठोर  है। आपके  चरण कोमल है।

जब परशुराम जी कटु वचन कहते गए तब भी भगवान ने कहा कि,

सब प्रकार हम तुम्ह सन हारे। छमहु बिप्र अपराध हमारे॥

(सूत्र) हम सभी को ब्राह्मण- भक्ति का उदाहरण दे रहे है।(भूसुर=पृथ्वी के देवता,ब्राह्मण)

मन क्रम बचन कपट तजि जो कर भूसुर सेव।
मोहि समेत बिरंचि सिव बस ताकें सब देव॥

राम जी ने लछमण से भी यही कहा

प्रथमहिं बिप्र चरन अति प्रीती। निज निज कर्म निरत श्रुति रीती॥

अतः तुम्हे अब केवल ब्राह्मणो से भय रह गया है। जेसे हो सके उन्हे वश में लाना तुम्हारा काम है।(महिपाल=राजा)

बिप्र श्राप बिनु सुनु महिपाला। तोर नास नहिं कवनेहुँ काला॥

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