परशुरामजी (समर=युद्ध )करने पर तुले हुए और रामजी युद्ध नहीं करना चाहते है क्योंकि ब्राह्मण है यदि रामजी सीधे कह देते कि मैंने धनुष तोड़ा तब युद्ध होता, दूसरे प्रकट करने में कि हमने तोड़ा है,अभिमान ( सूचित )होता है। अपने को धनु भंजनिहारा।
अति बिनीत मृदु सीतल बानी। बोले रामु जोरि जुग पानी॥
कह कर अपने को दास कहा कि तुम्हारा कोई एक दास होगा युद्ध करने से रामजी को ब्रह्म हत्या लगती रामजी अपनी प्रशंसा कभी नहीं करते ऐसा भाव युद्ध के बाद रामजी ने सीता एवं गुरु वशिष्ठ से भी कहा
नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥
कह रघुबीर देखु रन सीता। लछिमन इहाँ हत्यो इँद्रजीता॥
हनूमान
अंगद के मारे। रन महि परे निसाचर भारे॥
गुर बसिष्ट कुलपूज्य हमारे। इन्ह की कृपाँ दनुज रन मारे॥
रामजी परशुरामजी से –॥ हे नाथ!हमारी और आपकी बराबरी कैसी?कहिए न, कहाँ
चरण और कहाँ मस्तक! कहाँ मेरा राम मात्र छोटा-सा नाम और कहाँ आपका परशुसहित बड़ा नाम। (सूत्र) जब हम आपके चरणों में हम अपना
मस्तक धरते है! तब बराबरी कहाँ रही? हमहि तुमहि का भाव हम सेवक है आप नाथ (स्वामी)
है! क्या सेवक स्वामी में कभी बराबरी होती है? कभी नहीं दूसरा भाव हम क्षत्रिय है और
आप ब्राह्मण है क्या बराबरी संभव है? कभी नहीं(सरिबरि=बराबरी,समता) (मुनिराया=मुनिराज
)
हमहि तुम्हहि सरिबरि कसि नाथा।।कहहु न कहाँ चरन कहँ माथा।।
मैं तुम्हार अनुचर मुनिराया। परिहरि कोपु करिअ अब दाया॥
राम कहेउ रिस तजिअ मुनीसा। कर कुठारु आगें यह सीसा॥
जेहिं रिस जाइ करिअ सोइ स्वामी। मोहि जानिअ आपन अनुगामी॥
अतः हे नाथ अनजान में की हुई चूक छमा योग्य होती है, अंत में परशुरामजी ने स्वयं यही कहा है (अनजानत=अनजाने की चूक)
छमहु चूक अनजानत केरी। चहिअ बिप्र उर कृपा घनेरी।।
अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।
(सूत्र) राम मात्र ‘ पद से नाम जाप करने वालों को श्री रामजी के मुखारविन्द से उपदेश हो रहा है कि हमारा दो अक्षर का मंत्र है, इसमें और कुछ न मिलावें। (ख)-लघु‘ कहकर सूचित किया कि मंत्र जितना ही छोटा होता हे, उतना ही उसका प्रभाव अधिक होता है | (ग) ‘हमारा!
(बहु वचन) कहने का भाव कि इस मंत्र पर हमारा बड़ा ममत्व है, इसी से (राम नाम सब नामों से अधिक है, पुनः भाव कि हमें यह, दो अक्षर का ही नाम प्रिय है ओर जो इसे जपते हैं वे भी हमें प्रिय हैं। पुनः इसमें समस्त योगी लोग रमते हैं और आपका पाँच अक्षर का नाम है सो उसमें केवल फरसा ही रमा है।
राम मात्र लघु नाम हमारा। परसु सहित बड़ नाम तोहारा।।
जिसके वश में ब्रह्मा, विष्णु, शिव और सभी देवता हैं, वह मंत्र अत्यंत छोटा है। जैसे महान मतवाले गजराज को छोटा–सा अंकुश वश में करता है॥(खर्ब=लघु,छोटा)
मंत्र परम लघु जासु बस बिधि हरि हर सुर सर्ब।
महामत्त गजराज कहुँ बस कर अंकुस खर्ब॥
छोटा तो है पर
रामनाम सब नामों से बढ़कर है और पाप रूपी पक्षियों के समूह के लिए यह वधिक के समान है। ऐसा
कहना
सही नहीं है । कि राम जी अयोध्या में राजा दशरथ के यहाँ प्रगट हुए तब गुरू वशिष्ठ जी ने इनका नाम राम रखा । और तभी से राम नाम चला आ रहा है ।राम जी तो राजा दशरथ के यहाँ पुत्र रूप में प्रगट होने से पहले भी थे । राम जी अनादि हैं । अजन्मा हैं । अनंत हैं । ठीक ऐसे ही राम नाम भी अनादि है । राम नाम अनादि काल से ही चला आ रहा है (सूत्र) राम नाम मंत्र है । राम नाम महामंत्र है । राम नाम श्रेष्ठ है । रामनाम सर्वश्रेष्ठ है । राम नाम सरल है । राम नाम सुंदर है । राम नाम राम जी के ही समान(सहज,सरल) हैं।
राम सकल नामन्ह ते अधिका। होउ नाथ अघ खग गन बधिका।।
राम परशुराम से –॥ हे देव! हमारे तो एक ही गुण धनुष है और आपके
परम पवित्र(शम,दम,तप,शौच,क्षमा,सरलता, ज्ञान,विज्ञान और आस्तिकता-ये) नौ गुण हैं। आप नाम में ही बड़े नही,आप गुण में
भी बड़े है। मुझ मे केवल एक गुण है। धनुर्वेद जानता हूँ।रामजी ने परशुरामजी से बारबार
‘मुनि’और विप्रवर कहा(अर्थात एक वार भी उनको वीर न स्वीकार किया),तब (परशु राम) रुष्ट
होकर बोले कि तू भी तेरे भाई जैसा सरीखा टेड़ा है।
देव एकु गुनु धनुष हमारें। नव गुन परम पुनीत तुम्हारें।।
सब प्रकार हम तुम्ह सन हारे। छमहु बिप्र अपराध हमारे।।
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