कह रघुबीर देखु रन प्रभु रामजी अपना पराक्रम कभी नहीं कहा- उनकी सदा रीति है कि वे हमेशा किये गए… Read More
गहि सरनागति राम की सभी युगों में शरणागति की महिमा भारी है सारे वेद, बेदान्त, रामायण, गीता , भागवत उपनिषद्,… Read More
देवताओ की सरनागति,जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता। रामायण में देवताओ की सरनागति-रावण के द्वारा जो अत्याचार हो… Read More
सरल,गुर पद बंदि सहित अनुरागा। राम मुनिन्हसन आयसु मागा॥ रामचन्द्रजी ने मुनि से आज्ञा माँगी समस्त जगत के स्वामी राम सुंदर मतवाले श्रेष्ठ हाथी की-सी… Read More
जानहु मुनि तुम्ह मोर सुभाऊ। राम जी नारद से हे मुनि! यहाँ प्रभु ने अपना स्वभाव अपने मुख से कहा… Read More
रघुबंसिन्ह कर सहज श्री रामचन्द्रजी भाई लक्ष्मण से बोले- सहज सुभाऊ' अर्थात् उनका मन स्वतः वश में रहता है, उनको साधन… Read More
परशुरामजी (समर=युद्ध )करने पर तुले हुए और रामजी युद्ध नहीं करना चाहते है क्योंकि ब्राह्मण है यदि रामजी सीधे कह देते कि मैंने धनुष तोड़ा तब युद्ध होता, दूसरे प्रकट करने में कि हमने तोड़ा है,अभिमान ( सूचित )होता है। अपने को धनु भंजनिहारा। अति बिनीत मृदु सीतल बानी। बोले रामु जोरि जुग पानी॥ कह कर अपने को दास कहा कि तुम्हारा कोई एक दास होगा युद्ध करने से रामजी को ब्रह्म हत्या लगती रामजी अपनी प्रशंसा कभी नहीं करते ऐसा भाव युद्ध के बाद रामजी ने सीता एवं गुरु वशिष्ठ से भी कहा नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥… Read More
तब कर कमल जोरि रघुराई। यहाँ रामजी ने हाथ जोड़ कर अपने ऐश्वर्य को छुपाया और मुनि के भजन के… Read More
नाइ सीसु पद अति अनुरागा। उठि रघुबीर बिदा तब मागा॥ अति अनुरागा। का भाव वनवास सुनकर रामजी के मन… Read More
हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम्ह देखी सीता मृगनैनी॥ हे पक्षियों! हे पशुओं! हे भौंरों की पंक्तियों! तुमने कहीं… Read More