मानस चिंतन

जिमि जिमि तापसु कथइ उदासा। तिमि तिमि नृपहि उपज बिस्वासा॥

  जिमि जिमि तापसु कथइ अवतार के हेतु, प्रतापभानु  साधारण धर्म में भले ही रत रहा हो ज्ञानी भले ही… Read More

11 months ago

बिस्व बिदित एक कैकय देसू। सत्यकेतु तहँ बसइ नरेसू॥

बिस्व बिदित एक कैकय अवतार के हेतु, फल की आशा को त्याग कर कर्म करते रहना चाहिए समस्त कर्मो के… Read More

11 months ago

स्वायंभू मनु अरु सतरूपा। जिन्ह तें भै नरसृष्टि अनूपा॥

स्वायंभू मनु अरु अवतार के हेतु,ब्रह्म अवतार की विशेषता यह है कि इसमें रघुवीरजी ने सभी चरित्रों कोअतिशय अर्थात पूर्ण… Read More

12 months ago

सुमिरत हरिहि श्राप गति बाधी। सहज बिमल मन लागि समाधी॥

सुमिरत हरिहि श्राप गति अवतार के हेतु, कैलाश पर्वत तो पूरा ही पावन है पर जहाँ जहाँ गंगा जी बहती… Read More

12 months ago

नारद श्राप दीन्ह एक बारा। कलप एक तेहि लगि अवतारा।।

  अवतार के हेतु, भगवान को वृन्दा और नारद जी ने करीब करीब एक सा ही श्राप दिया। एक जनम… Read More

12 months ago

एक कलप सुर देखि दुखारे। समर जलंधर सन सब हारे॥

एक कलप सुर देखि अवतार के हेतु, एक कल्प में सब देवताओं को जलन्धर दैत्य से युद्ध में हार जाने… Read More

12 months ago

राम जनम के हेतु अनेका। परम बिचित्र एक तें एका॥

  राम जनम के हेतु राम अवतार के कारण 2-पार्वती जी विवाह के उपरांत भगवत चिंतन करती है एक दिन… Read More

12 months ago

जस दूलहु तसि बनी बराता। कौतुक बिबिध होहिं मग जाता॥

जस दूलहु तसि बनी पार्वती विवाह, भृंगी के अवाहन पर सभी भूत, प्रेत, पिशाच, बेताल, डाकिनी, जोगिनी, शिव जी की… Read More

1 year ago

सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा॥

सिवहि संभु गन करहिं विवाह शिव जी का हो रहा है कैलाश पर कोई हलचल नहीं हो रही सभी उत्सव… Read More

1 year ago

तेहिं तपु कीन्ह संभु पति लागी। सिव समाधि बैठे सबु त्यागी॥

तेहिं तपु कीन्ह संभु पार्वती विवाह-देवताओं ने ब्रह्मा जी से कहा की आपने ऐसा वरदान क्यों दिया ? ब्रह्मा जी… Read More

1 year ago