सुनो, जानकी तुम्हारे बिना ये सब आज ऐसे हर्षित हैं, मानो राज पा गए हों। (अर्थात् तुम्हारे अंगों के सामने ये सब तुच्छ, अपमानित और लज्जित थे। आज तुम्हें न देखकर ये अपनी शोभा के अभिमान में फूल रहे हैं)
पूज्य राम
कमल वेदांती का सुन्दर भजन
है इधर को गई वा उधर को गई, है इधर को गई वा उधर को गई॥
जानकी जानकी वो किधर को गई, जानकी जानकी वो किधर को गई ॥
हे अनुज चूक तुमसे ये भरी हुई,हे अनुज चूक तुमसे ये भरी हुई॥
ले गया हो ना उनको हर कर कोई, ले गया हो ना उनको हर कर कोई॥
हे विधाता बता क्या लिखा भाग्य में, मेरी तकदीर जाने किधर सो गई॥
समान्य से समान्य या ऐसा कहे नादान से नादान व्यक्ति भी नारी
के वियोग में इस तरह से विलाप नहीं करेगा जबकि रामजी तो को मालूम है।
जबकि रामजी तो
जब भगवान ने अवतार लिया भगवान ने सभी देवताओं से कहा
कि अब में तुम्हारे दुखों को दूर करने के लिए अवतार लूँगा तब रामजी के अनन्य
सेवकों में से कुछ बन्दर बने कुछ रीछ बने कुछ कौल भील बने और उनमें से कुछ (मधुकर=भौंरा) बने ,और कुछ (खग= आकाश में उड़ने वाले पक्षी) (मृग=हिरन) बने।
लक्ष्मण जी भी सीता की सुरक्षा में वन के देवताओं,दसों दिशाओं के देवता,को सौंप कर रामजी के पास गए।
जब पूर्ण–काम ही है; तो इनको कामना किसकी? तब वियोग–जन्य विरह कैसा? आनंद –राशि हैं तो दुःख कैसा? ‘अज अविनाशी ‘ अर्थात जन्म और नाश–रहित है,फिर भी मनुष्य जैसे चरित कर रहे हैं। यह माधुर्य लीला है।
पूर्णकाम, आनंद की राशि, अजन्मा और अविनाशी श्री रामजी मनुष्यों के चरित्र कर रहे हैं। (पूरकनाम=पूर्ण काम) (अज=अजन्मा) (अबिनासी=अमर)
पर इस लीला को जब शंकर जी ने देखा तो उनको हर्ष हुआ,जिसके स्वामी,मित्र की पत्नी का हरण हो गया उनको हर्ष कैसे हुआ ? केवल और केवल इस तरह की लीला के कारण।
भगवान के चरित्रों के रहस्य कौन जान सकता है? वही कुछ जान सकता है जिसे वे कृपा करके बता दें– बाल्मीक जी से जब राम जी ने रहने का स्थान पूछा तब बाल्मीक जी ने कहा
बाल्मीक जी ने कहा हे रामचन्द्रजी! आप के चरित्र को सुन कर मूर्ख
मोहित होते हैं और ज्ञानवान प्रसन्न होते हैं। आप जो कहते और करते हैं वह सब सत्य है, क्योंकि जैसी कछनी का? वैसी नाच नाचना चाहिये। जैसा स्वांग भरे वैसा ही नाचना भी तो चाहिये (इस समय आप मनुष्य रूप में हैं, अतः मनुष्योचित व्यवहार करना ठीक ही हैं)।
हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम्ह देखी सीता मृगनैनी॥
संत-असंत वंदना जितनी वन्दना मानस में बाबा तुलसी ने की उतनी वंदना किसी दूसरे ग्रंथ… Read More
जिमि जिमि तापसु कथइ अवतार के हेतु, प्रतापभानु साधारण धर्म में भले ही रत… Read More
बिस्व बिदित एक कैकय अवतार के हेतु, फल की आशा को त्याग कर कर्म करते… Read More
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सुमिरत हरिहि श्राप गति अवतार के हेतु, कैलाश पर्वत तो पूरा ही पावन है पर… Read More
अवतार के हेतु, भगवान को वृन्दा और नारद जी ने करीब करीब एक सा… Read More