(सूत्र) हर्ष और विषाद में गहरा अंतर है। दोनों का जीवन से रिश्ता तो है, लेकिन दोनों स्थितियों में बड़ा भारी अंतर भी है। हर्ष का मतलब है जीवन में अनुकूलता और विषाद यानी जीवन में प्रतिकूलता पर रामजी तो दोनों से परे है।
(पिता की आज्ञा के कारण} ही रामजी को रघुवीर कहा गया।
माता पिता की आज्ञा और आशीर्वाद मुद मंगल दायक होती है ये स्वयं रामजी ने माता कौशिल्या से आज्ञा मांगते समय कहा और पिता को जब सन्देश सुमंत्र जी के द्वारा भेजा तब भी यही कहा हे पिताजी! आप मेरी चिंता न कीजिए। आपकी कृपा, अनुग्रह और पुण्य से वन में और मार्ग में हमारा कुशल-मंगल होगा।
आयसु देहि मुदित मन माता। जेहिं मुद मंगल कानन जाता॥
हर्ष समय अर्थात आपके सत्य की रक्षा से जगत में आपका सुयश होगा और मुझे भी इस कार्य में उत्साह है! आपका विस्तृत यश है। आपके गुण समूहों का तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता, जिनकी बराबरी का जगत में कोई नहीं है।
हे पिताजी! सत्य पालन श्रेष्ठ धर्म है! ‘सत्य‘ ही समस्त उत्तम सुकृतों (पुण्यों) की जड़ है। यह बात वेद–पुराणों में प्रसिद्ध है और मनुजी ने भी यही कहा है।
(सूत्र) बिना पुण्य के यश हो ही नहीं सकता और बिना पाप के कभी भी अपयश नहीं होगा।
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