यहाँ सुतीछण मुनि की अनन्य भक्ति के कारण रामजी ने स्वयं कहा-
विभीषण जी मिलने पर-
पुरुषों में सिंह रूप दोनों भाई (राम-लक्ष्मण) विश्वामित्र मुनि का भय हरने और समाज के कल्याण के लिए प्रसन्न होकर चले। यहाँ मुनि भय हरण के लिए हर्ष (आनंद) है।
हर्ष का कारण अवतार के कार्य सिद्धि के लिए मुनि से मंत्र लेंगे।
अवतार की लीला के मुख्य पात्र श्री सीताजी की प्राप्ति करना है अतः हर्ष होना चाहिए पर धनुर्भंग होने पर जयमाला पहनायी जाने पर अथवा विवाह होने पर रामजी को कोई हर्ष नहीं हुआ पर वन जाते समय प्रसन्नता और उत्साह दोनों का उल्लेख है।यहाँ हर्ष का मुख्य कारण जगत का कल्याण है। प्रसन्नता इस लिए कि भक्तों पर (अनुग्रह=कृपा) करने को मिलेगी और चाव (उत्साह=हर्ष) इसलिए कि अवतार-कार्य रावण आदि का वध होगा।
राम जी के भक्त हनुमान जी ने भी यही कहा जब तक मैं सीताजी को देखकर (लौट) न आऊँ।तब तक आप सभी मेरा इन्तजार करना काम अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है।
श्री रामजी तो हर्ष विषाद रहित है तब यहाँ स्वभाव-विरुद्ध हर्ष कैसे हुआ?
जिनको मन सहित वाणी नहीं जानती और सब जिनका अनुमान ही करते हैं, कोई तर्कना नहीं कर सकते, जिनकी महिमा को वेद ‘नेति’ कहकर वर्णन करता है और जो (सच्चिदानंद) तीनों कालों में एकरस (सर्वदा और सर्वथा निर्विकार) रहते है।
वेद जिनके विषय में ‘नेति-नेति’ कहकर रह जाते हैं और शिव भी जिन्हें ध्यान में नहीं पाते (अर्थात् जो मन और वाणी से नितांत परे हैं), वे ही राम माया से बने हुए मृग के पीछे दौड़ रहे हैं। सरस्वती जी, शिवजी, ब्रह्मा जी, शास्त्र, वेद और पुराण ये सब ‘नेति-नेति’ कहकर सदा जिनका गुणगान किया करते हैं। श्रुतियाँ, ‘नेति-नेति’ कहकर जिसका गुणगान करती हैं ( नेति नेति=न इति न इति) एक संस्कृत वाक्य है जिसका अर्थ है ‘यह नहीं, यह नहीं’ या ‘यही नहीं, वही नहीं’ या ‘अन्त नहीं है, अन्त नहीं है’। ब्रह्म या ईश्वर के संबंध में यह वाक्य उपनिषदों में अनंतता सूचित करने के लिए आया है। उपनिषद् के इस महावाक्य के अनुसार ब्रह्म शब्दों के परे है। अतः सर्व समर्थ ईश्वर की व्याख्या हो ही नहीं सकती।
यह आश्चर्य ही है की भक्त जनों का उद्धार करने के लिए लीला चरित्र ही करते हैं, नहीं तो ऐसे रामजी को रावण और निशाचर वध करने के लिये ऐसी क्या आवश्यकता है?
संत-असंत वंदना जितनी वन्दना मानस में बाबा तुलसी ने की उतनी वंदना किसी दूसरे ग्रंथ… Read More
जिमि जिमि तापसु कथइ अवतार के हेतु, प्रतापभानु साधारण धर्म में भले ही रत… Read More
बिस्व बिदित एक कैकय अवतार के हेतु, फल की आशा को त्याग कर कर्म करते… Read More
स्वायंभू मनु अरु अवतार के हेतु,ब्रह्म अवतार की विशेषता यह है कि इसमें रघुवीरजी ने… Read More
सुमिरत हरिहि श्राप गति अवतार के हेतु, कैलाश पर्वत तो पूरा ही पावन है पर… Read More
अवतार के हेतु, भगवान को वृन्दा और नारद जी ने करीब करीब एक सा… Read More