यग्वालिक जी द्वारा महिमा-(महिसेष=महिषासुर)
शंकर जी द्वारा महिमा-(कुठारी=कुठार=कुल्हाड़ी) (बिहग=पक्षी,परिंदा)
गरुण जी द्वारा महिमा-
शंकर जी द्वारा महिमा-(निर्बान=मोक्ष)
लंकनी हनुमान जी से बोली हृदय में भगवान का नाम धारण करके जो भी काम करेंगे उसमें निश्चित सफलता मिलेगी! (सूत्र) कर्म करने से मना नहीं किया पर सुमरिन करते हुए कर्म करें! (सितलाई=सीतल+आई =शीतलता) (गरल=विष) (सुधा=अमृत, पियूष) (रिपु=शत्रु) (मिताई=मित्रता)
शिव ने पार्वती जी को राम कथा सुनाई। बोले-मैं उन्हीं श्री रामजी के बाल रूप की वंदना करता हूँ,जिनका नाम जपने से सब सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं। मंगल के धाम, अमंगल के हरने वाले और श्री दशरथजी के आँगन में खेलने वाले बालरूप रामजी मुझ पर कृपा करें। कुल मिलाकर प्रकार आठ सिद्धियां हैं अणिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व और वशित्व सहज ही प्राप्त हो जाती है। (सुलभ=सहज)
अणिमा- इससे बहुत ही छोटा रूप बनाया जा सकता है।
लघिमा- इस सिद्धि से छोटा, बड़ा और हल्का बना जा सकता है।
महिमा- कठिन और दुष्कर कार्यों को आसानी से पूरा करने की सिद्धि।
गरिमा- अहंकारमुक्त होने का बल।
प्राप्ति- इच्छाशक्ति से मनोवांछित फल प्राप्त करने की सिद्धि।
प्राकाम्य- कामनाओं की पूर्ति और लक्ष्य पाने की दक्षता।
वशित्व- वश में करने की सिद्धि।
ईशित्व- ईष्टसिद्धि और ऐश्वर्य सिद्धि।
जब रामजी निर्गुण से सगुन हुए तब प्रथम बालरूप धारण किया इसी से शिव जी की उपासना बालरूप की है। शिव जी चाहते है की हमारे हृदय रुपी आँगन में प्रभु बसे क्योकि बालक ही आँगन में विचरता है। (द्रवउ=कृपा कीजिये,द्रवित) (अजिर=आँगन) (अजिर बिहारी=भक्तो के मन में बिना थके रमते रहना) (जिसु=जिसका)
भगवान राम के प्रिय भक्तों में हनुमानजी का नाम सबसे पहले आता है। हनुमानजी भगवान शिव के ग्यारवें रुद्र अवतार है।
शिव जी शांत रस में रामजी को भजते है इसी से बालरूप को इष्ट मानते है। बाल रूप अवस्था में विधि अविधि को नहीं देखते अपितु थोड़ी सेवा में बहुत प्रसन्न हो जाते है। जैसे बच्चा मिटटी के खिलोने के बदले अमूल्य पदार्थ दे देता है इस कथन से भगवान में अज्ञानता का आरोपण होता है की क्या रामजी ऐसे अज्ञानी है? रामजी किसी के फुसलाने में आ जाते है। पर भाव यह है कि भगवान को जो जिस तरह से भजता है भगवान उसके साथ उसी प्रकार का नाटक करते है। दूसरा भाव यह है की बालक रूप में जितनी सेवा भक्त कर सकता है उतनी सेवा अन्य रूप में नहीं हो सकती! इस ग्रन्थ मे कई जगह पर शिवजी का ध्यान करना, हृदय मे अन्य अवस्थाओं के रूपों और छवि कि मूर्ती को धारण करना और बाललीला , विवाह, उदासीन, राज्यभिषेक आदि सभी समय के रूपो मे मगन होना वर्णित है। क्योकि शिव राम के अनन्य भक्त है! (भाखी=भाषी =बोलनेवाला) (छबिसिंधु=शोभा के समुद्र )
शंकर जी रामजी बाल लीला को देख कर-
शंकर जी रामजी को विलाप करते देख कर-(जथा=अव्य=यथा,जैसे,धन) (जथारथ=यथार्थ, विश्वसनीय व्यक्ति)
शिव जी को पार्वती से विवाह करने के लिए मनना –
राम राज्याभिषेक पर-
इन प्रसंगो से स्पष्ट है कि शिव जी सभी रसों के आनंद के भोक्ता है! स्वामी जी के मत अनुसार शिव जी बाल रूप के उपासक नहीं है!
भुसण्डी जी और लोमेश जी की सेवा भी बाल रूप की है यथा (बपुष=शरीर,देह) (कोटि सत=अरबों= सौ करोड़ की संख्या)
हे गरुण जी बालक रूप राम का भाव= अन्य अवस्था के चरित्र में धर्मा चरण है, धर्म के अनुसरण कि शिक्षा है पर बालक रूप में ही तो माता को अपना अखंड रूप दिखाया था! बालक रूप में ही चिरंजीव मुनि उनके मुख में प्रविष्ट हुए थे और माया का दर्शन उसी में कराया गया था! इसी रुप में बहुत रंग के चरित होते है इस लिए यह योगियों, महायोगेश्वर शंकर जी का इष्ट है! यह ध्यान पूर्ण रूप से माधुर्यमय है इसमें ऐश्वर्य नाम मात्र भी नहीं है!
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