हनुमान जी जब भी रूप बदलते है तब ब्राह्मण का ही रूप धारण करते है रामजी से विप्र रूप से मिले, विमीषण जी और भरतजी,से भी विप्र रूप से ही मिले।
हनुमान जी भक्त शिरोमणि है और भक्त हृदय में प्रभु की ऐसी प्रेरणा होती है कि झूठे वचन निकलते ही नहीं है अतःहनुमान जी अपना विप्रत्व भूल गए हनुमान जी में दास भाव जाग गया अतः रामजी को स्वामी कहा
हनुमान जी जिन चरणों का ध्यान करते है उन्ही चरणों को देखकर पूछा, पुनः मनोहर सुन्दर शरीर देखकर पूछते है। आपका शरीर वन की भयानक लू और धूप सहने के योग्य नहीं है। पर फिर भी सुन्दर हो यह तो बड़े आश्चर्य की बात है। ऐसा कौन सा कारण है कि आप वन जेठ मास की भयंकर लू और धूप सहन करते हुए भी बिना छाता जूता के इसनिर्जन वन मे घूम रहे हो? आप सामान्य देवता भी नहीं हो। (आतप=गरमी ,धूप) (बाता=वात=हवा, वायु) (दुसह=अत्यंत कष्टदायक)
रामजी ने संक्षेप में हनुमान जी से कहा
श्री रामजी ने हनुमान जी को अपनी अरण्यकाण्ड तक की यात्रा का दर्शन कराया अर्थात पूरी कथा कह दी।
जैसे ही रामजी ने कहा
हनुमान जी ने कैसे पहचाना?
आकाशवाणी और प्रभु की वाणी का मिलान करके रामजी को पहिचान लिया।
आकाशवाणी क्या है?
नारद के वचन (श्राप) क्या है? (अपकार=अहित, अमंगल, अनिष्ट)
वही भगवान यहाँ कहते है।
हनुमान जी ने ये सब बातें श्री राम में देखी नृप तन धारण किए हैं,नारि-विरह से दुखी है।और सुग्रीव के यहाँ आये है, अब वानर सहायता करेंगे, हनुमान जी शिवरूप से वहाँ थे जहाँ आकाशवाणी हुई थी।
अर्थात कौशलपुरी में राजा दसरथ के यहाँ अवतार लेंगे वही यहाँ कहते है पुनः भगवान ने अपने मुख से कहकर अपना चरित गाकर जनाया है इसी से हनुमान जी ने पहचान लिया। जिस व्यक्ति का राज्य चला गया, पत्नी का हरण हो गया ,वन में मारे मारे घूम रहा हो और मुख पर कोई दुख का भाव नहीं हो और तो और सभी घटना को गा कर सुना रहा हो वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं हो सकता ये केवल और केवल राम ही है।
अतः हनुमान जी ने पहिचान लिया।
अभी तक प्रभु के ना पहिचाने का कारण माया के बस भूले रहे इससे नहीं पहिचाना।प्रभु की वाणी सुनने से माया निवृत्त हुई तब पहिचाना। हनुमान जी महान उच्च कोटि के साधक भी हैं। वीर योद्धा व अखण्ड तपस्वी हैं। (सूत्र) लेकिन उनकी दीनता तो देखिए वे बड़े बुलंद स्वर में श्रीराम जी से पहली ही भेंट में स्वीकार कर लेते हैं कि हे प्रभु! मैं तो मंद, मोह बस, कुटिल व अज्ञानी हूँ। माया के वशीभूत हूँ, जिस कारण आपको पहचाना नहीं− यथा
जिन हनुमान जी के भजन−सुमिरण से समस्त जीवों के तीनों ताप हरे जाते हैं। वे हनुमान जी कह रहे हैं कि हे प्रभु! मैं आपकी दुहाई देकर कहता हूँ।
जब तक प्रभु को नहीं पहिचाना था तब हनुमान जी ने माथा नवाकर प्रश्न किया था, और जब भगवान को पहिचान लिया तब चरणों में गिर पड़े।
कोई व्यक्ति भगवान को कब जान सकता है? जब भगवान स्वयं कृपा करके किसी को जनाना चाहें तभी वह जान सकता। (सूत्र) इस लिए व्यक्ति को इस भ्रम में कभी नहीं रहना चाहिए कि हम सब कुछ जानते है पल भर में नारद जैसे ज्ञानी को मूढ़ बनने वाले भी कोईऔर नहीं राम जी ही है।
शंकर जी ने हम सभी को बड़ा ही सुन्दर (सूत्र) दिया।
(सूत्र) भगवान जब स्वयं कृपा करके किसी को बताना चाहे तभी वह जान सकता है! जब भगवान अपनी इच्छा, वचन वा हास्य से योग माया का आवरण हटाते है। तभी जीव उसको पहचान सकता है अन्यथा नहीं (सूत्र) जीव के प्रयत्न, साधन से या विचार शक्ति से माया का आवरण कभी नहीं हटता है। सुग्रीव जी ने कहा जीव के प्रयत्नों से या विचार शक्ति से माया का आवरण कभी भी नहीं हटता।
शिवजी कहते हैं हे पार्वती! उस सुख वर्णन नहीं किया जा सकता। शरीर पुलकित है, मुख से वचन नहीं निकलता। वे प्रभु के सुंदर वेष की रचना देख रहे हैं। हनुमान जी (प्रभु को साष्टांग दंडवत् प्रणाम किया)
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा।।
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