जरा विचार करे की क्या हम इस पर चल रहे है ? हम क्या कर रहे है महादेव राम जी के बारे में सब जानते है। लेकिन पार्वती जी अनभिज्ञ है, वो उनकी परीक्षा लेती है भगवान राम के सरल व सहज स्वभाव के समक्ष अपनी भूल का अहसास होता है। (सहज= सुगम) (वृषकेतु=महादेव)
(सूत्र) अपना परिचय देना हो या प्रश्न करना हो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी की शैली बड़ी अद्भुत है। यद्यपि उन्होंने सीता जी के वेष में आईं सती जी को पहचानकर अपनी सर्वज्ञता स्पष्ट कर दी है। लेकिन अपना परिचय देने में सांसारिक मर्यादा का पालन करना नहीं भूलते हैं.पहले प्रभु ने हाथ जोड़कर सती को प्रणाम किया और पिता सहित अपना नाम बताया। फिर कहा कि वृषकेतु शिवजी कहाँ हैं? आप यहाँ वन में अकेली किसलिए फिर रही हैं? पुनःश्रीराम जी इसी तरह हनुमान जी से मिलने पर बोले।
श्री रामजी ने कहा- हम कोसलराज दशरथजी के पुत्र हैं और पिता का वचन मानकर वन आए हैं। हमारे राम-लक्ष्मण नाम हैं, हम दोनों भाई हैं। (वन में) राक्षस ने (मेरी पत्नी) जानकी को हर लिया। हे ब्राह्मण! हम उसे ही खोजते फिरते हैं। हमने तो अपना चरित्र कह सुनाया। अब हे ब्राह्मण! अपनी कथा समझाकर कहिए।
आपन चरित कहा हम गाई।
संत कहते है की जिसकी पत्नी का हरण हो गया हो इस अवस्था मै श्री रामचंद्रजी कितना सहज (सरल)भाव से अपनी घटना को गा कर सती को और हनुमान जी को बता रहे है। ऐसी सहजता धीरज केवल और केवल परमात्मा ही कर सकता है।
मुझे कपट, छल, निन्दयी नहीं बल्कि निर्मल और शुद्ध हृदय वाले लोग भाते हैं। (सूत्र) इसलिये निर्मल ह्रदय से प्रभु को भजिये और सबको प्यार करिये किसी से द्वेष मत रखिये।
ईश्वर परमसत्ता (श्री राम) का सहज स्वभाव है कि वे अपने भक्त में अभिमान कभी नहीं रहने देते, भगवान अभिमान को दूर करते हैं, पर मनुष्य फिर अभिमान कर लेता है।अभिमान करते-करते उम्र बीत जाती है। इसलिये हरदम ‘हे नाथ! हे मेरे नाथ!’ पुकारते रहो और भीतर से इस बात का खयाल रखो कि जो कुछ विशेषता आयी है, भगवत कृपा से आयी है। यह अपने घर की नहीं है। ऐसा नहीं मानोगे तो बड़ी दुर्दशा होगी। क्योंकि अभिमान जन्म-मरण रूपी संसार का मूल है और अनेक प्रकार के क्लेशों तथा समस्त दुखों का मूल है। (सूत्र) केवल और केवल अभिमान व्यक्ति को (गर्त=नर्क) में पहुंच देता है।
मेरा मन जो स्वभाव से ही वैराग्य रूप (बना हुआ) है, (इन्हें देखकर) इस तरह मुग्ध हो रहा है, जैसे चन्द्रमा को देखकर चकोर। हे प्रभो! इसलिए मैं आपसे सत्य (निश्छल) भाव से पूछता हूँ। हे नाथ! बताइए, छिपाव न कीजिए। वन में रहने वाले कोल-भील भी भगवान के विग्रहको देखकर मुग्ध हो जाते हैं।
रामचरितमानस में श्री राम ने जीवन में सफल होने की कई बाते बताई है। इसी में उन्होंने बताया कि हमें किस तरह के इंसान से किस तरह की बातें करनी चाहिए। जिससे कि हम हमेशा सफल रहें।
(सूत्र) मूर्ख से प्रार्थना, बेईमान व्यक्ति से प्यार से बात, कंजूस से दान की बात कभी भी न करें।
समस्त जगत के स्वामी श्री रामजी सुंदर मतवाले श्रेष्ठ हाथी की सी चाल से स्वाभाविक ही चले। श्री रामचन्द्रजी के चलते ही नगर भर के सब स्त्री-पुरुष सुखी हो गए और उनके शरीर रोमांच से भर गए।
सीता स्वयंवर में जब सब राजा एक-एक करके धनुष उठाने का प्रयत्न कर रहे थे, तब श्रीराम संयम से बैठे ही रहे। जब गुरु विश्वामित्र की आज्ञा हुई तभी वे खड़े हुए और उन्हें प्रणाम करके धनुष उठाया। गुरुदेव के आदर और सत्कार में श्रीराम कितने विवेकी और सचेत थे इसका उदाहरण तब देखने को मिलता है, जब उनको राज्योचित शिक्षण देने के लिए उनके गुरु वसिष्ठजी महाराज महल में आते हैं। सदगुरु के आगमन का समाचार मिलते ही श्रीराम सीता जी सहित दरवाजे पर आकर गुरुदेव का सम्मान करते हैं।
भरत जी कहते है मै अपने स्वामी का स्वभाव मैं जानता हूँ। वे अपराधी पर भी कभी क्रोध नहीं करते। मुझ पर तो उनकी विशेष कृपा और स्नेह है। मैंने खेल में भी कभी उनकी रीस (अप्रसन्नता) नहीं देखी। बचपन में ही मैंने उनका साथ नहीं छोड़ा और उन्होंने भी मेरे मन को कभी नहीं तोड़ा (मेरे मन के प्रतिकूल कोई काम नहीं किया)। मैंने प्रभु की कृपा की रीति को हृदय में भलीभाँति देखा है (अनुभव किया है)। मेरे हारने पर भी खेल में प्रभु मुझे जिता देते रहे हैं।
रामचन्द्रजीने कहा पापी का यह सहज स्वभाव होता है कि मेरा भजन उसे कभी नहीं सुहाता। यदि वह (रावण का भाई) निश्चय ही दुष्ट हृदय का होता तो क्या वह मेरे सम्मुख आ सकता था?
रामचन्द्रजीने कहा जिसकी अलौकिक सुंदरता देखकर स्वभाव से ही पवित्र मेरा मन क्षुब्ध हो गया है। वह सब कारण (अथवा उसका सब कारण) तो विधाता जानें,किन्तु हे भाई! सुनो, मेरे मंगलदायक (दाहिने) अंग फड़क रहे हैं।
रघुवंशियों का यह सहज (जन्मगत) स्वभाव है कि उनका मन कभी कुमार्ग पर पैर नहीं रखता। मुझे तो अपने मन का अत्यन्त ही विश्वास है कि जिसने (जाग्रत की कौन कहे) स्वप्न में भी पराई स्त्री पर दृष्टि नहीं डाली है।
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