सलाह,सब के बचन श्रवन सुनि, कह प्रहस्त कर जोरि।
गहि सरनागति राम की, भवसागर की नाव।
रहिमन जगत-उधार को, और न कछू उपाय॥
कर्म मार्ग ,भक्ति मार्ग ,ज्ञान मार्ग, को कहते कहते जब भक्त थक जाते है और जब इन तीनों उपायों से कुछ भी हासिल नहीं होता तब भक्त झट से शरणागति जैसे सरल उपाय को अपना लेते है। शरणागति मार्ग का ही सहारा लेते है और महाराज कलयुग में इससे सरल उपाय है भी नहीं।
संसार-सागर के पार ले जाने वाली नाव राम की एक शरणागति ही है। संसार से उद्धार पाने का दूसरा कोई उपाय नहीं। रहीम जी ने सुन्दर ही कहा है कि जो बिना जड़ की अमर बेल का भी पालन पोषण करता है, ऐसे ईश्वर को छोड़कर बाहर किसे खोजते फिर रहे हो। अरे, ऐसा ब्रह्मा (प्रभु) तुम्हारे अंदर ही है, उसे वहीं खोजो। यही भाव व्यक्त करते हुए वे कहते हैं। (भवसागर=संसार रूपी समुद्र, जन्म मरण)
व्यास जी कहते हैं, मुझे तो तेरा भरोसा है। मैं तो तेरी शरणागत हूँ। औरों से मुझे क्या मतलब? अब मुझे किस बात की फिक्र है। शरणागति हो जाने के बाद तुम ही मेरे इष्ट हो। (आचार=आचरण,चाल चलन)
कबीर दास जी ने कहा मेरे पास अपना कुछ भी नहीं है। मेरा यश, मेरी धन-संपत्ति, मेरी शारीरिक-मानसिक शक्ति, सब कुछ तुम्हारी ही है। जब मेरा कुछ भी नहीं है तो उसके प्रति ममता कैसी? तेरी दी हुई वस्तुओं को तुम्हें समर्पित करते हुए मेरी क्या हानि है? इसमें मेरा अपना लगता ही क्या है?
हे पार्वती! रघुनाथ की यह स्वाभाव है कि वे शरणागत पर सदा प्रेम करते हैं।
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