रामचरितमानस चिंतन

नर तन सम नहिं कवनिउ देही। जीव चराचर जाचत तेही।।

नर तन सम नहिं मानस चिंतन,मनुष्य शरीर का मिलना सबसे दुर्लभ है। स्वर्ग के देवी-देवता… Read More

यह सब माया कर परिवारा। प्रबल अमिति को बरनै पारा।।

यह सब माया कर माया का परिवार-संतो  द्वारा सुन्दर व्याख्या माया अकेली नहीं है इसके  परिवार… Read More

माया,मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥

मैं अरु मोर तोर माया जड़ है जैसे कुल्हाड़ी स्वयं कुछ नहीं कर सकती जब… Read More

माया,एक बार प्रभु सुख आसीना। लछिमन बचन कहे छलहीना।।

एक बार प्रभु सुख लक्ष्मणजी के वचनों में ही क्या, उनके हृदय में, उनके आचरण… Read More

माया मरी न मन मरा, मर मर गये शरीर।

माया मरी न मन संत कबीर ने कहा शरीर तो नष्ट हो जाता है पर… Read More

अहंकार,नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं। प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं॥

नहिं कोउ अस जनमा एक अकेला अहंकार ही जीव को नर्क की यात्रा करा देता… Read More

मानस चिंतन,भरी उनकी आँखों में है कितनी करुणा।

भरी उनकी आँखों आज के समय में मित्रता जल्दी टूट जाती है जबकि मित्रता कभी… Read More

कह रघुबीर देखु रन सीता। लछिमन इहाँ हत्यो इँद्रजीता।।

कह रघुबीर देखु रन प्रभु रामजी अपना पराक्रम कभी नहीं कहा- उनकी सदा रीति है… Read More

श्रवन सुजसु सुनि आयउँ, प्रभु भंजन भव भीर।

श्रवन सुजसु सुनि आयउँ विभीषण की शरणागति के माध्यम से गोस्वामी जी- ने मनुष्य को ईश्वर… Read More