रामचरितमानस चिंतन

जिमि जिमि तापसु कथइ उदासा। तिमि तिमि नृपहि उपज बिस्वासा॥

जिमि जिमि तापसु कथइ अवतार के हेतु, प्रतापभानु  साधारण धर्म में भले ही रत रहा… Read More

बिस्व बिदित एक कैकय देसू। सत्यकेतु तहँ बसइ नरेसू॥

बिस्व बिदित एक कैकय अवतार के हेतु, फल की आशा को त्याग कर कर्म करते… Read More

स्वायंभू मनु अरु सतरूपा। जिन्ह तें भै नरसृष्टि अनूपा॥

स्वायंभू मनु अरु अवतार के हेतु,ब्रह्म अवतार की विशेषता यह है कि इसमें रघुवीरजी ने… Read More

नारद श्राप दीन्ह एक बारा। कलप एक तेहि लगि अवतारा।।

नारद श्राप दीन्ह एक बारा। अवतार के हेतु, भगवान को राक्षस राज जालंधर की पतिव्रता… Read More

एक कलप सुर देखि दुखारे। समर जलंधर सन सब हारे॥

एक कलप सुर देखि अवतार के हेतु, एक कल्प में सब देवताओं को जलन्धर दैत्य… Read More

राम जनम के हेतु अनेका। परम बिचित्र एक तें एका॥

राम जनम के हेतु राम अवतार के कारण 2-पार्वती जी विवाह के उपरांत भगवत चिंतन… Read More

जस दूलहु तसि बनी बराता। कौतुक बिबिध होहिं मग जाता॥

जस दूलहु तसि बनी पार्वती विवाह, भृंगी के अवाहन पर सभी भूत, प्रेत, पिशाच, बेताल,… Read More

तदपि एक मैं कहउँ उपाई। होइ करै जौं दैउ सहाई॥

तदपि एक मैं कहउँ पार्वती विवाह- हे पर्वतराज! ब्रह्मा जी ने जो ललाट पर लिख दिया है,… Read More

श्री गुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुर सुधार।

श्री गुरु चरण सरोज तुलसीदास जी ने कहा-गुरु जी के चरण कमल के रज से… Read More

मोहि सम यह अनुभयउ न दूजें। सबु पायउँ रज पावनि पूजें।।

मोहि सम यह अनुभयउ गुरु संत की महिमा- नारायण दास नाभा जी कहते है भगवान, भगवान का भक्त, भक्ति, और गुरु-कहने को तो ये… Read More