रामायण

तदपि एक मैं कहउँ उपाई। होइ करै जौं दैउ सहाई॥

तदपि एक मैं कहउँ पार्वती विवाह- हे पर्वतराज! ब्रह्मा जी ने जो ललाट पर लिख दिया है,… Read More

अहंकार,नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं। प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं॥

नहिं कोउ अस जनमा एक अकेला अहंकार ही जीव को नर्क की यात्रा करा देता… Read More

मानस चिंतन,भरी उनकी आँखों में है कितनी करुणा।

भरी उनकी आँखों आज के समय में मित्रता जल्दी टूट जाती है जबकि मित्रता कभी… Read More

प्रेम,बार बार प्रभु चहइ उठावा। प्रेम मगन तेहि उठब न भावा॥

बार बार प्रभु चहइ रामजी हनुमान जी को बार-बार उठाना चाहते है, परंतु प्रेम में… Read More

कह रघुबीर देखु रन सीता। लछिमन इहाँ हत्यो इँद्रजीता।।

कह रघुबीर देखु रन प्रभु रामजी अपना पराक्रम कभी नहीं कहा- उनकी सदा रीति है… Read More

गहि सरनागति राम की, भवसागर की नाव।रहिमन जगत उधार को,

गहि सरनागति राम की सभी युगों में शरणागति की महिमा भारी है सारे वेद, बेदान्त,… Read More

परहित,वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर।

परहित,वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर। परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।… Read More

सरल,गुर पद बंदि सहित अनुरागा। राम मुनिन्हसन आयसु मागा॥

गुर पद बंदि सहित अनुरागा। रामचन्द्रजी ने मुनि से आज्ञा माँगी समस्त जगत के स्वामी राम सुंदर मतवाले श्रेष्ठ हाथी… Read More

सरल,जानहु मुनि तुम्ह मोर सुभाऊ। जन सन कबहुँ कि करऊँ दुराऊ॥

जानहु मुनि तुम्ह मोर सुभाऊ। राम जी नारद से हे मुनि! यहाँ प्रभु ने अपना… Read More