रामचरितमानस चिंतन

मेरा मुझमें कुछ नहीं,जो कुछ है सो तोर। तेरा तुझकौं सौंपता,

मेरा मुझमें कुछ नहीं,जो कुछ है सो तोर। कबीर कह रहे हैं कि अगर आपको… Read More

उपजइ राम चरन बिस्वासा। भव निधि तर नर बिनहिं प्रयासा।।

उपजइ राम चरन बिस्वासा। तुलसीदास जी ने कहा-अपने अपने धर्म में जो अटल विश्वास है,… Read More

कवनिउ सिद्धि कि बिनु बिस्वासा। बिनु हरि भजन न भव भय नासा॥

कवनिउ सिद्धि कि बिनु बिस्वासा। ये तो भारत जैसे सनातन धर्म की महिमा है कि… Read More

संसय,बंधन काटि गयो उरगादा। उपजा हृदयँ प्रचंड बिषादा॥

बंधन काटि गयो उरगादा। रण की शोभा तब ही होती है जब बराबर के वीरों… Read More

मोरेहु कहें न संसय जाहीं। बिधि बिपरीत भलाई नाहीं॥

मोरेहु कहें न संसय जाहीं। पार्वती जी के मन में संशय- जगत को पवित्र करनेवाले… Read More

संसय,एकरूप तुम्ह भ्राता दोऊ। तेहि भ्रम तें नहिं मारेउँ सोऊ।।

एकरूप तुम्ह भ्राता दोऊ। श्री राम जी के मन में संशय- बालि और सुग्रीव के… Read More

पार्वती विवाह,देखहु मुनि अबिबेकु हमारा। चाहिअ सदा सिवहि भरतारा।।

देखहु मुनि अबिबेकु हमारा। पार्वती विवाह- शंकर जी ने सप्तऋषियों से कहा की जाकर पार्वती… Read More

सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥

सौरज धीरज तेहि रथ चाका। तुलसीदास ने रामजी के माध्यम से हम सभी को यह… Read More

रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा।।

रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। तुलसी का धर्म रथ-संसार में विजय प्राप्त करने के लिए धर्म… Read More

तेहि कौतुक कर मरमु न काहूँ। जाना अनुज न मातु पिताहूँ॥

तेहि कौतुक कर मरमु न काहूँ। काकभुशुण्डि हे पक्षीराज! मुझे यहाँ निवास करते सत्ताईस कल्प… Read More