ज्ञान गंगा

नर तन सम नहिं कवनिउ देही। जीव चराचर जाचत तेही।।नर तन सम नहिं कवनिउ देही। जीव चराचर जाचत तेही।।

नर तन सम नहिं कवनिउ देही। जीव चराचर जाचत तेही।।

नर तन सम नहिं मानस चिंतन,मनुष्य शरीर का मिलना सबसे दुर्लभ है। स्वर्ग के देवी-देवता भी मनुष्य शरीर चाहते हैं।… Read More

1 year ago
प्रभु माया बलवंत भवानी। जाहि न मोह कवन अस ग्यानी॥प्रभु माया बलवंत भवानी। जाहि न मोह कवन अस ग्यानी॥

प्रभु माया बलवंत भवानी। जाहि न मोह कवन अस ग्यानी॥

प्रभु माया बलवंत भवानी। माया का प्रभाव - गरुण जी कोई साधारण नहीं है गरुण जी त्रिलोक पति के वाहन… Read More

1 year ago
यह सब माया कर परिवारा। प्रबल अमिति को बरनै पारा।।यह सब माया कर परिवारा। प्रबल अमिति को बरनै पारा।।

यह सब माया कर परिवारा। प्रबल अमिति को बरनै पारा।।

यह सब माया कर माया का परिवार-संतो  द्वारा सुन्दर व्याख्या माया अकेली नहीं है इसके  परिवार में के आठ पुत्र,आठ पुत्र… Read More

1 year ago
माया,मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥माया,मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥

माया,मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥

मैं अरु मोर तोर माया जड़ है जैसे कुल्हाड़ी स्वयं कुछ नहीं कर सकती जब कोई  कुल्हाड़ी को उठा कर… Read More

1 year ago
माया,एक बार प्रभु सुख आसीना। लछिमन बचन कहे छलहीना।।माया,एक बार प्रभु सुख आसीना। लछिमन बचन कहे छलहीना।।

माया,एक बार प्रभु सुख आसीना। लछिमन बचन कहे छलहीना।।

एक बार प्रभु सुख लक्ष्मणजी के वचनों में ही क्या, उनके हृदय में, उनके आचरण में कभी  कोई छल-कपट की… Read More

1 year ago

मानस चिंतन,भरी उनकी आँखों में है कितनी करुणा।

भरी उनकी आँखों आज के समय में मित्रता जल्दी टूट जाती है जबकि मित्रता कभी टूटती  ही नहीं अगर टूटती… Read More

1 year ago

सरल,गुर पद बंदि सहित अनुरागा। राम मुनिन्हसन आयसु मागा॥

सरल,गुर पद बंदि सहित अनुरागा। राम मुनिन्हसन आयसु मागा॥ रामचन्द्रजी ने मुनि से आज्ञा माँगी समस्त जगत के स्वामी राम सुंदर मतवाले श्रेष्ठ हाथी की-सी… Read More

2 years ago

सरल,अति बिनीत मृदु सीतल बानी। बोले रामु जोरि जुग पानी॥

परशुरामजी (समर=युद्ध )करने पर  तुले हुए और  रामजी  युद्ध नहीं करना चाहते  है क्योंकि ब्राह्मण है यदि  रामजी  सीधे कह देते कि मैंने धनुष तोड़ा  तब युद्ध होता, दूसरे प्रकट करने में कि हमने तोड़ा है,अभिमान ( सूचित )होता है। अपने को धनु भंजनिहारा। अति बिनीत मृदु सीतल बानी। बोले रामु जोरि जुग पानी॥  कह कर अपने को दास कहा  कि तुम्हारा कोई एक दास होगा युद्ध करने से रामजी को  ब्रह्म हत्या  लगती रामजी अपनी प्रशंसा कभी नहीं करते  ऐसा भाव युद्ध के बाद रामजी ने सीता एवं गुरु वशिष्ठ से भी कहा नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥… Read More

2 years ago

सरल,तब कर कमल जोरि रघुराई। बोले बचन श्रवन सुखदाई।।

तब कर कमल जोरि रघुराई। यहाँ रामजी ने हाथ जोड़ कर अपने ऐश्वर्य को छुपाया और मुनि के भजन के… Read More

2 years ago

सरल,नाइ सीसु पद अति अनुरागा। उठि रघुबीर बिदा तब मागा॥

  नाइ सीसु पद अति अनुरागा। उठि रघुबीर बिदा तब मागा॥ अति अनुरागा। का भाव वनवास सुनकर रामजी के मन… Read More

2 years ago