नर तन सम नहिं मानस चिंतन,मनुष्य शरीर का मिलना सबसे दुर्लभ है। स्वर्ग के देवी-देवता भी मनुष्य शरीर चाहते हैं।… Read More
प्रभु माया बलवंत भवानी। माया का प्रभाव - गरुण जी कोई साधारण नहीं है गरुण जी त्रिलोक पति के वाहन… Read More
यह सब माया कर माया का परिवार-संतो द्वारा सुन्दर व्याख्या माया अकेली नहीं है इसके परिवार में के आठ पुत्र,आठ पुत्र… Read More
मैं अरु मोर तोर माया जड़ है जैसे कुल्हाड़ी स्वयं कुछ नहीं कर सकती जब कोई कुल्हाड़ी को उठा कर… Read More
एक बार प्रभु सुख लक्ष्मणजी के वचनों में ही क्या, उनके हृदय में, उनके आचरण में कभी कोई छल-कपट की… Read More
भरी उनकी आँखों आज के समय में मित्रता जल्दी टूट जाती है जबकि मित्रता कभी टूटती ही नहीं अगर टूटती… Read More
सरल,गुर पद बंदि सहित अनुरागा। राम मुनिन्हसन आयसु मागा॥ रामचन्द्रजी ने मुनि से आज्ञा माँगी समस्त जगत के स्वामी राम सुंदर मतवाले श्रेष्ठ हाथी की-सी… Read More
परशुरामजी (समर=युद्ध )करने पर तुले हुए और रामजी युद्ध नहीं करना चाहते है क्योंकि ब्राह्मण है यदि रामजी सीधे कह देते कि मैंने धनुष तोड़ा तब युद्ध होता, दूसरे प्रकट करने में कि हमने तोड़ा है,अभिमान ( सूचित )होता है। अपने को धनु भंजनिहारा। अति बिनीत मृदु सीतल बानी। बोले रामु जोरि जुग पानी॥ कह कर अपने को दास कहा कि तुम्हारा कोई एक दास होगा युद्ध करने से रामजी को ब्रह्म हत्या लगती रामजी अपनी प्रशंसा कभी नहीं करते ऐसा भाव युद्ध के बाद रामजी ने सीता एवं गुरु वशिष्ठ से भी कहा नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥… Read More
तब कर कमल जोरि रघुराई। यहाँ रामजी ने हाथ जोड़ कर अपने ऐश्वर्य को छुपाया और मुनि के भजन के… Read More
नाइ सीसु पद अति अनुरागा। उठि रघुबीर बिदा तब मागा॥ अति अनुरागा। का भाव वनवास सुनकर रामजी के मन… Read More