रावण सुन (ओही=उसे,उसको,उस व्यक्ति को)
हे रावण क्या तुम जयंत की व्यथा को नहीं जानते राम से विमुख होने पर उसका क्या हाल हुआ! (समन=शमन=यम)(हरिजान=हरिकी सवारी, गरुड़) (बिवुध = देवता, देव) (विवुधनदी=सुरसरि, गंगा)(बेतरनी=वैतरणी) यह एक प्रसिद्ध पौराणिक नदी है. जो यम के द्वार पर है। कहते है कि यह नदी बहुत तेज़ बहती है, इसका जल बहुत ही गर्म और बदबूदार है, और उसमें हडिडयां, लहू तथा वाल आदि भरे हुए हैं। यह भी माना जाता है कि प्राणी के मरने पर पहले यह नदी पार करनी पड़ती.है, जिसमें उसे बहुत कष्ट होता है | यहाँ राम से विमुख होने का परिणाम बताया !
राम कृपा पात्र की व्यवस्था इससे उलटी है!और यदि तुम रामजी की शरण में आ जओगे तो राम जी ने स्वयं ही कहा है!
और रावण राम जी की शरणागत का फल
और रावण राम जी की शरणागत का फल परम फल
लक्ष्मण=या तो अभिमान छोड़कर अपने छोटे भाई विभीषण की भाँति प्रभु के चरण कमलों का भ्रमर बन जा। अथवा रे दुष्ट! राम के बाण रूपी अग्नि में कुल सहित पतिंगा हो जा (दोनों में से जो अच्छा लगे सो कर)॥अब तुम्हें दो गति है। भृंग बनो या पतंग बनो।यदि अभिमान नही छोड सकते तो कुल के सहित पतंग बनोगे। आसक्त तो दोनों होते हैं भृंग भी और पतंग भी,पर परिणाम दो का अलग अलग होता है भृंग’ आनंद से रस लेते हैं और पतंग काल के मुख में पड़ते हैं।सो तुम्हारी जैसी इच्छा हो वैसा करो। (सूत्र) जीव की दो ही गति होती है! (इव=अव्यय,समान, सदृश) (भृंग=भौंरा) (यूथप=बंदरों का समूह) (सरानल =बाणरूपी अग्नि)
संत-असंत वंदना जितनी वन्दना मानस में बाबा तुलसी ने की उतनी वंदना किसी दूसरे ग्रंथ… Read More
जिमि जिमि तापसु कथइ अवतार के हेतु, प्रतापभानु साधारण धर्म में भले ही रत… Read More
बिस्व बिदित एक कैकय अवतार के हेतु, फल की आशा को त्याग कर कर्म करते… Read More
स्वायंभू मनु अरु अवतार के हेतु,ब्रह्म अवतार की विशेषता यह है कि इसमें रघुवीरजी ने… Read More
सुमिरत हरिहि श्राप गति अवतार के हेतु, कैलाश पर्वत तो पूरा ही पावन है पर… Read More
अवतार के हेतु, भगवान को वृन्दा और नारद जी ने करीब करीब एक सा… Read More