कह कर अपने को दास कहा कि तुम्हारा कोई एक दास होगा युद्ध करने से रामजी को ब्रह्म हत्या लगती रामजी अपनी प्रशंसा कभी नहीं करते ऐसा भाव युद्ध के बाद रामजी ने सीता एवं गुरु वशिष्ठ से भी कहा
रामजी परशुरामजी से –॥ हे नाथ!हमारी और आपकी बराबरी कैसी?कहिए न, कहाँ
चरण और कहाँ मस्तक! कहाँ मेरा राम मात्र छोटा-सा नाम और कहाँ आपका परशुसहित बड़ा नाम। (सूत्र) जब हम आपके चरणों में हम अपना
मस्तक धरते है! तब बराबरी कहाँ रही? हमहि तुमहि का भाव हम सेवक है आप नाथ (स्वामी)
है! क्या सेवक स्वामी में कभी बराबरी होती है? कभी नहीं दूसरा भाव हम क्षत्रिय है और
आप ब्राह्मण है क्या बराबरी संभव है? कभी नहीं(सरिबरि=बराबरी,समता) (मुनिराया=मुनिराज
)
अतः हे नाथ अनजान में की हुई चूक छमा योग्य होती है, अंत में परशुरामजी ने स्वयं यही कहा है (अनजानत=अनजाने की चूक)
(सूत्र) राम मात्र ‘ पद से नाम जाप करने वालों को श्री रामजी के मुखारविन्द से उपदेश हो रहा है कि हमारा दो अक्षर का मंत्र है, इसमें और कुछ न मिलावें। (ख)-लघु‘ कहकर सूचित किया कि मंत्र जितना ही छोटा होता हे, उतना ही उसका प्रभाव अधिक होता है | (ग) ‘हमारा!
(बहु वचन) कहने का भाव कि इस मंत्र पर हमारा बड़ा ममत्व है, इसी से (राम नाम सब नामों से अधिक है, पुनः भाव कि हमें यह, दो अक्षर का ही नाम प्रिय है ओर जो इसे जपते हैं वे भी हमें प्रिय हैं। पुनः इसमें समस्त योगी लोग रमते हैं और आपका पाँच अक्षर का नाम है सो उसमें केवल फरसा ही रमा है।
जिसके वश में ब्रह्मा, विष्णु, शिव और सभी देवता हैं, वह मंत्र अत्यंत छोटा है। जैसे महान मतवाले गजराज को छोटा–सा अंकुश वश में करता है॥(खर्ब=लघु,छोटा)
छोटा तो है पर
रामनाम सब नामों से बढ़कर है और पाप रूपी पक्षियों के समूह के लिए यह वधिक के समान है। ऐसा
कहना
सही नहीं है । कि राम जी अयोध्या में राजा दशरथ के यहाँ प्रगट हुए तब गुरू वशिष्ठ जी ने इनका नाम राम रखा । और तभी से राम नाम चला आ रहा है ।राम जी तो राजा दशरथ के यहाँ पुत्र रूप में प्रगट होने से पहले भी थे । राम जी अनादि हैं । अजन्मा हैं । अनंत हैं । ठीक ऐसे ही राम नाम भी अनादि है । राम नाम अनादि काल से ही चला आ रहा है (सूत्र) राम नाम मंत्र है । राम नाम महामंत्र है । राम नाम श्रेष्ठ है । रामनाम सर्वश्रेष्ठ है । राम नाम सरल है । राम नाम सुंदर है । राम नाम राम जी के ही समान(सहज,सरल) हैं।
राम परशुराम से –॥ हे देव! हमारे तो एक ही गुण धनुष है और आपके
परम पवित्र(शम,दम,तप,शौच,क्षमा,सरलता, ज्ञान,विज्ञान और आस्तिकता-ये) नौ गुण हैं। आप नाम में ही बड़े नही,आप गुण में
भी बड़े है। मुझ मे केवल एक गुण है। धनुर्वेद जानता हूँ।रामजी ने परशुरामजी से बारबार
‘मुनि’और विप्रवर कहा(अर्थात एक वार भी उनको वीर न स्वीकार किया),तब (परशु राम) रुष्ट
होकर बोले कि तू भी तेरे भाई जैसा सरीखा टेड़ा है।
——————————————————————————–
संत-असंत वंदना जितनी वन्दना मानस में बाबा तुलसी ने की उतनी वंदना किसी दूसरे ग्रंथ… Read More
जिमि जिमि तापसु कथइ अवतार के हेतु, प्रतापभानु साधारण धर्म में भले ही रत… Read More
बिस्व बिदित एक कैकय अवतार के हेतु, फल की आशा को त्याग कर कर्म करते… Read More
स्वायंभू मनु अरु अवतार के हेतु,ब्रह्म अवतार की विशेषता यह है कि इसमें रघुवीरजी ने… Read More
सुमिरत हरिहि श्राप गति अवतार के हेतु, कैलाश पर्वत तो पूरा ही पावन है पर… Read More
अवतार के हेतु, भगवान को वृन्दा और नारद जी ने करीब करीब एक सा… Read More