भरद्वाज मुनि मन में हँसकर श्री रामजी से कहते हैं कि आपके लिए सभी (मग=मार्ग) सुगम हैं।
राम जी बाल्मीक मुनि के आश्रम में आते है और उनसे विनम्रता पूर्वक हे मुनि वह स्थान बताइये जहाँ में लक्ष्मण सीता सहित रहूँ।
बाल्मीक मुनि- राम की भांति भांति प्रसंसा करते है,और अंत में कहते है।
हे राम आप चित्रकूट पर्बत पर निवास करे,वहां आपके लिए सब प्रकार की सुविधा है। सुहावना पर्वत हैऔर सुन्दर वन है हाथी, सिंह, हिरन और पछियो का विहार स्थल है। (सुपास=सुख,आराम ,सुभीता) (सुभीता=वह स्थिति जिसमें किसी काम को करने में कोई कठिनाई न हो, सुविधाजनक स्थिति) (विहग= पक्षी,चिड़िया)
राम ने शबरी से सीता का पता पुछा हे भामिनि! अब यदि तू गजगामिनी जानकी की कुछ खबर जानती हो तो बता।यहाँ श्री जानकी जी का हुलिया भी सूचित करते हैं! जानकी जी जनक की कन्या हैं,और श्रेष्ट हाथी की जैसी उनकी चाल है! यहाँ “करिबरगामिनी” पद जनकसुता का विशेषण है। एक तरह से भगवान सीता जी का हुलिया बताते है। यहाँ यह सबरी के लिए सम्बोधन नहीं हो सकता क्योकि सबरी में भगवान माता का भाव रखते है। (गामिनी= प्राचीन काल की एक प्रकार की नाव-यह नाव 96 हाथ लंबी, 12 हाथ चौड़ी और 9 हाथ ऊँची होती थी और समुद्रों में चलती थी । ऐसी नाव पर यात्रा करना अशुभ और दुखदायी समझा जाता था) (करि=हाथी) (वर=उत्तम, श्रेष्ठ)
राम हे वीर वानरराज सुग्रीव और लंकापति विभीषण! सुनो, इस गहरे समुद्र को किस प्रकार पार किया जाए? जिस कार्य मे श्री रामजी की न्यूनता होती देखते है, उसे श्री लक्ष्मण जी नहीं सह सकते। सागर के समीप रामजी द्वारा धरना देने मे उनकी न्यूनता है! (तव=तुम्हारा) (सायक= तीर,बाण) (कोटि= करोड़ों) (गंभीरा=गहरा) (गाई=सविस्तार व्याख्या करना,गाना) (कादर=भीरु, डरपोक,व्याकुल, परेशान,आर्त,अधीर,विवश) (जलधि= समुद्र) (सायक=तीर, बाण)
रामजी ने लक्ष्मण से हँसकर बोले- ऐसे ही करेंगे,मन में धीरज रखो।
श्री राम विभीषण की सलाह मानकर समुद्र से तीन दिन तक विनिती करते है लेकिन उसके कान पर जू तक नहीं रेंगती, तव वे लक्ष्मण की सलाह मानकर उस पर कोप करते है।
रामजी ने कहा
जामवन्त ने रामजी से कहा-हे सर्वज्ञ (सब कुछ जानने वाले) हे सबके हृदय में बसने वाले (अंतर्यामी) हे बुद्धि,बल, तेज,धर्म और गुणों की राशि! (रघुराई=रघुवंसियो के राजा) (रासी=ढेर)
श्री राम जामवंत की सलाह को महत्व देते है।
रामजी ने कहा शत्रु से वही बातचीत करना, जिससे हमारा काम हो और उसका कल्याण हो।(बतकही=बातचीत)
श्री रामचंद्रजी ने सब मंत्रियों को पास बुलाया और कहा- लंका के चार बड़े विकट दरवाजे हैं। उन पर किस तरह आक्रमण किया जाए, इस पर विचार करो। (बाँका=टेढ़ा, तिरछा,अनोखा एवं सुंदर) (अनी=सेना, समूह)
श्री राम युद्ध में रावण के मस्तक काट रहे थे काटते ही सिरों का समूह पुनः बढ़ जाता, जैसे प्रत्येक लाभ पर लोभ बढ़ता है। वैसे ही सेवा से कभी-कभी अहंकार बढ़ जाता है। रावण विद्वान था, तपस्वी था, फिर भी भगवान की इच्छा को समझ नहीं पा रहा था। साधु और शैतान के बीच यही अंतर होता है। शैतान भगवान की बात को न सुनता है, न समझता है, पर साधु तो संकेत पकड़ लेता है। ईश्वर की इच्छा से जरा भी अलग न चलने का नाम ही संतत्व है। । शिवजी कहते हैं – हे उमा! जिस प्रभु कि केवल और केवल इच्छा मात्र से काल भी मर जाता है, वही प्रभु सेवक बिभीषण की प्रीति की परीक्षा ले रहे हैं। तब श्री रामचंद्रजी ने विभीषण की ओर देखा।
विभीषणजी ने कहा- हे सर्वज्ञ! हे चराचर के स्वामी! हे शरणागत के पालन करने वाले हे देवता और मुनियों को सुख देने वाले सुनिए। (चराचर =संसार जड़ और चेतन) (पियूष=अमृत,सुधा,दूध)
मुनि वशिष्ठजी बोले-श्रेष्ठ मुनि देश, काल और अवसर के अनुसार विचार करके वचन बोले- हे सर्वज्ञ! हे सुजान! हे धर्म, नीति, गुण और ज्ञान के भण्डार राम! सुनिए-। (अनुहार=अनुकूल, अनुसार)
मुनि वशिष्ठजीबोले-आप सबके हृदय के भीतर बसते हैं और सबके भले-बुरे भाव को जानते हैं, जिसमें पुरवासियों का, माताओं का और भरत का हित हो, वही उपाय बतलाइए।
मुनि के वचन सुनकर श्री रघुनाथजी कहने लगे- हे नाथ! उपाय तो आप ही के हाथ है। पहले तो मुझे जो आज्ञा हो,मैं उसी शिक्षा को माथे पर चढ़ाकर करूँ।
फिर हे गोसाईं! आप जिसको जैसा कहेंगे वह सब तरह से सेवा में लग जाएगा (आज्ञा पालन करेगा)। मुनि वशिष्ठजी कहने लगे- हे राम! तुमने सच कहा। पर भरत के प्रेम ने विचार को नहीं रहने दिया।
इसीलिए मैं बार-बार कहता हूँ, मेरी बुद्धि भरत की भक्ति के वश हो गई है। मेरी समझ में तो भरत की रुचि रखकर जो कुछ किया जाएगा, शिवजी साक्षी हैं, वह सब शुभ ही होगा। (बहोरि बहोरी=बार-बार,पुनः)
मुनि वशिष्ठजीबोले-पहले भरत की विनती आदरपूर्वक सुन लीजिए, फिर उस पर विचार कीजिए। तब साधुमत, लोकमत, राजनीति और वेदों का निचोड़ (सार) निकालकर वैसा ही (उसी के अनुसार) कीजिए।
राम सप्रेम कहेउ मुनि पाहीं। नाथ कहिअ हम केहि मग जाहीं॥
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