शेष सभी शरीर भोग केलिये है दिव्य तन वाले देवता भी भोगी ही होते है ! तो हीन शरीर वालो मनुष्य की कौन बात? हम देवता श्रेष्ठ अधिकारी होकर भी स्वार्थपरायण हो आपकी भक्ति को भुलाकर निरंतर भवसागर के प्रवाह (जन्म-मृत्यु के चक्र) में पड़े हैं। जो सब में रमा हुआ है वो राम है जो सबके चित्त को आकर्षित करता वह है वह कृष्ण और जो सबकी उपासना आराधना का केंद्र है वह राधा है! हितेषियों में सबसे पहला कोई हितेषी है तो वह है गुरु! गुरु देव वह है जो सब में रमा है सभी के चित्त को आकर्षित करता है और सभी की आराधना का केंद्र है वही उपास्य देव बनकर अपने में रमाने के लिए वही है गुरुदेव। यथाः (भवभीति= जन्म-मरण का भय, संसृति (संसार) का भय, सांसारिक भय)
तुलसी दासजी की पत्नी ने तुलसी दास से कहा
तुलसीदास जी कहते हैं कि मनुष्य बड़ा या छोटा नहीं होता समय ही बलवान होता है । जब अर्जुन ने अपने गांडीव बाण से महाभारत का युद्ध जीता था पर एक ऐसा भी समय आया जब वही भीलों के हाथों लुट गए और वह अपनी गोपियों को भीलों के आक्रमण से नहीं बचा पाए।
तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान।
तुलसीदासजी कहते हैं राम जी केवल और केवल भक्तो,गाय के लिये ही अवतार लेते है।
रामजी ने विभीषण से कहा भी
बिभीषन ने रावण से स्वयं कहा-(जन=सेवक, सर्वसाधारण लोग,मनुष्य समूह) (रंजन=प्रसन्न करना, मन प्रसन्न करनेवाला) (भंजन=मिटाने वाला, नष्ट करने वाला) (ब्राता= समूह)
राम जी ने दिव्य ज्ञान तारा को दिया।
काकभुशुण्डि जी गरुण जी से बोले- (अपबर्ग=मोक्ष)
के आधार पर भुशुण्डि जी को अपनी देह अतः कौवे को श्रेष्ठ बताना चाहिए, पर भुशुण्डि जी जैसा महा ज्ञानी जो 27 कल्पो से बैठ कर राम कथा कर रहे है।भुशुण्डि जी ने राम जी के 27 अवतार देखे है। यथाः
भुशुण्डि बता रहे है सब से दुर्लभ कौन सरीरा॥
क्योकि केवल और केवल इसी शरीर से माला, जप, दान, कथा, परहित, सेवा, चार धाम की यात्रा संभव है ! मनुष्य शरीर ही बैकुंठ के दरवाज़े की चाबी है मनुष्य शरीर ही एक मात्र साधन है।
के आधार पर भुशुण्डि जी कह रहे है की बाकी सभी योनि भोग योनि है। जो आगे कर के आये है वही भोग रहे है केवल और केवल नर तन ही कुछ कर सकता है! भगवान भी मनुष्य अवतार ले कर आये। पर महराज यह एक बहुत बड़ी विडम्बना है की भगवान इस पृथ्वी पर मनुष्य रूप लेकर आये और इंसान भगवान बनने का प्रयास कर रहा है। मनुष्य शरीर क्यों कीमती है? क्योकि शरीर यह एक सीडी है नर्क, स्वर्ग, अपवर्ग (मोक्ष) की, मनुष्य का शरीर एक जंक्शन है यहाँ से तीन रास्ते जाते है यह तो हम आपको तय करना है कौन सी ट्रैन पकडे।(चराचर=जड़ और चेतन, स्थावर और जंगम,संसार, संसार के सभी प्राणी)
सुग्रीव ने अंगद, नल, हनुमान से कहा
लक्ष्मण जी ने निषाद से कहा वही कृपालु श्री रामचन्द्रजी भक्त, भूमि, ब्राह्मण, गो और देवताओं के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करके लीलाएँ करते हैं, जिनकी कथा सुनने से जगत के जंजाल मिट जाते हैं।
कबीर देह धारण करने का दंड– भोग या प्रारब्ध निश्चित है जो सब को भुगतना होता है. अंतर इतना ही है कि ज्ञानी या समझदार व्यक्ति इस भोग को या दुख को समझदारी से भोगता है निभाता है संतुष्ट रहता है जबकि अज्ञानी रोते हुए दुखी मन से सब कुछ झेलता है।
संत-असंत वंदना जितनी वन्दना मानस में बाबा तुलसी ने की उतनी वंदना किसी दूसरे ग्रंथ… Read More
जिमि जिमि तापसु कथइ अवतार के हेतु, प्रतापभानु साधारण धर्म में भले ही रत… Read More
बिस्व बिदित एक कैकय अवतार के हेतु, फल की आशा को त्याग कर कर्म करते… Read More
स्वायंभू मनु अरु अवतार के हेतु,ब्रह्म अवतार की विशेषता यह है कि इसमें रघुवीरजी ने… Read More
सुमिरत हरिहि श्राप गति अवतार के हेतु, कैलाश पर्वत तो पूरा ही पावन है पर… Read More
अवतार के हेतु, भगवान को वृन्दा और नारद जी ने करीब करीब एक सा… Read More