ता पर मैं रघुबीर दोहाई। जानउँ नहिं कछु भजन उपाई॥
जरा मरन दुख रहित तनु समर जितै जनि कोउ।
एकछत्र रिपुहीन महि राज कलप सत होउ।।
जबकि हानि, लाभ, जीवन ,मरन, जस, अपजस,ये छह सभी की सभी विधाता के हाथ में है। इन पर किसी का कोई जोर नहीं होता, (सूत्र) सत्य तो यही है कि इंसान के हाथ में कुछ है ही नहीं।
कपटी मुनि ने प्रतापभानु कहा-तप के बल से ब्राह्मण सदा बलवान रहते है। उनके कोप अर्थात क्रोध से में भी रक्षा नही कर सकता। तुमने जो अजेयत्व माँगा है सो तो तभी सम्भव है जब तुम ब्राह्मणो को वश कर लो। तब दूसरे का कौन कहे त्रिदेव तुम्हारे वश हो जायँगे। और बाकी सब मेरे वरदान से हो जायगा। (बिधि= ब्रह्मा, व्यवस्था आदि का ढंग, प्रणाली, क़ानून) (बरिआरा= प्रबल ,बलवान)
क्योकि भगवान ने स्वयं कबंध से कहा है! भाव कि गन्धर्व आदि देवताओं की ब्राह्रण अपमान से यह दशा हुई है, कबन्ध एक गन्धर्व था जो कि दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण राक्षस बन गया था। तब अन्य जीव किस गिनती मे हैं, इसी से जान लो कि ब्राम्हण द्रोही हमको नहीं भाता।
जब नारद ने शाप दिया और कठोर वचन कहे,नारद ने पूछा कि यथा
इस पर भगवान ने कहा नारद जी इसमें आपका कोई दोष नहीं है।
जब भृगु जी ने लात मारी भी भगवान ने भृगु के चरण चिन्ह आज दिन तक भगवान अपने वक्ष स्थल पर धारण किए है, लात मारने पर उलटे उनके पैर दवाने लगे कि कही चोट न लगी हो, मेरी छाती कठोर है। आपके चरण कोमल है।
जब परशुराम जी कटु वचन कहते गए तब भी भगवान ने कहा कि,
(सूत्र) हम सभी को ब्राह्मण भक्ति का उदाहरण दे रहे है।(भूसुर= पृथ्वी के देवता, ब्राह्मण)
राम जी ने लक्ष्मणजी से भी यही कहा
अतः हे राजन तुम्हे अब केवल ब्राह्मणो से भय रह गया है। जेसे हो सके उन्हे वश में लाना तुम्हारा काम है।(महिपाल= राजा)
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