जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।

 

जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।

देवताओ की सरनागति,जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।

रामायण में देवताओ की सरनागति-रावण के द्वारा जो अत्याचार हो रहा है वह व्यथा किसको सुनाई जाय अतः सभी देवता मिल कर ब्रम्हा जी के पास गए पर रावण को वरदान तो ब्रम्हा जी ने ही दिया है अतः सभी मिलकर शंकर जी के पास गए शंकर जी बोले देवताओं रावण मेरा शिष्य जरूर है पर  में  और ब्रम्हा जी डर के मारे नित्य रावण के यहाँ हाजरी देते है।


वेद पढ़ें विधि शंभु सभीत पुजावन रावण सों नित आवें।

अतः हम सभी को नरायण के पास चलकर ही अपनी   व्यथा सुनना चाहिए, नारायण कहाँ मिलेंगे इस बात को लेकर  देवताओं में आपसी मतभेद होता है कोई बैकुण्ठ जाने की सलाह देता है और कोई छीरसागर चलने को कहता है शंकर जी ने कहा  प्रभु तो केवल और केवल प्रेम से ही प्रकट होते है। शंकर जी  सभी देवताओं  साथ लेकर  कहीं गये नहीं क्योकि 

हरि ब्यापक सर्बत्र समाना। प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना॥
देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं। कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं॥

अतः सभी देवताओं ने मिल कर नारायण की स्तुति की- (सुरनायक =हे देवताओंके स्वामी) (जन सुखदायक = सेवकों को सुख देने वाले ) (प्रनतपाल भगवंता =शरणागत की रक्षा करनेवाले भगवान)

जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।

(गो द्विज हितकारी =हे गो ब्राह्मणों का हित करने वाले)। (जय असुरारी =असुरों का विनाश करने वाले)। (सिधुंसुता प्रिय कंता =समुद्र की कन्या ( श्री लक्ष्मीजी) के प्रिय स्वामी!आपकी जय हो)। (सिंधुसुता प्रिय कंता=का भाव है की आप लक्ष्मी के प्रिय कंत है वे आपको कभी नहीं छोड़ती अतः असुरो का वध करने के लिए आप लक्ष्मी सहित अवतार ले। (कंता= कांत, पति,प्रियतम, स्वामी, नाथ) 

गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता॥

(पालन सुर धरनी =हे देवता और पृथ्वी का पालन करने वाले)। (अद्भुत करनी =आपकी लीला अद्भुत है)। (मरम न जानइ कोई =आपकी लीला का भेद कोई नहीं जानता)।

पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई।

(जो सहज कृपाला =ऐसे जो स्वभाव से ही कृपालु और दीनदयाला =दीनदयालु हैं)। (करउ अनुग्रह सोई =वे ही हमपर कृपा करें) (अनुग्रह=कृपा)

जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई॥

(अबिनासी= हे अविनाशी) (सब घट बासी= सबके हृदयमें निवास करने वाले ) ( अन्तर्यामी), (ब्यापक = सर्वव्यापक) (परमानंदा =परम आनन्दस्वरूप) (घट=पिंड,शरीर,ह्रदय)

जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा।

(अबिगत गोतीतं =अज्ञेय, इन्द्रियोंसे परे) (चरित पुनीतं = पवित्र चरित्र)  (मायारहित =मायासे रहित ) (मुकुंदा = मुकुन्द=मोक्षदाता,मुक्ति देने वाले )  (अबिगत- जो जाना न जाए,अज्ञात)

अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा॥

जेहि लागि बिरागी – इस लोक और परलोक के सब भोगों से विरक्त मुनि ।अति अनुरागी – अत्यन्त अनुरागी (प्रेमी) बनकर तथा । (बिगतमोह मुनिबृंदा= मोह से सर्वथा छूटे हुए ज्ञानी ,मुनिवृन्द) (बिगत=बीता हुआ) (मुनिवृंदा=मुनिओं का समूह)  

जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगत मोह मुनिबृंदा।

निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं – जिनका रातदिन ध्यान करते हैं और जिनके गुणों के समूह का गान करते हैं (बासर=दिन, सबेरा,प्रातः काल,सुबह,वह राग जो सबेरे गाया जाता है) (जयति=विजयी,जय)

निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा॥

(जेहिं सृष्टि उपाई =जिन्होंने सृष्टि उत्पत्र की) (त्रिबिध बनाई =स्वयं अपने को त्रिगुणरूप (ब्रह्मा, विष्णु शिवरूप) बनाकर (संग सहाय न दूजा = बिना किसी दूसरे संगी अथवा सहायता के)

जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा।

(सो करउ अघारी =वे पापों का नाश करनेवाले भगवान) (चिंत हमारी =हमारी सुधि लें) (जानिअ भगति न पूजा = हम न भक्ति जानते हैं, न पूजा) (अघारी=पाप का शुत्रु,पापनाशक,पाप दूर करनेवाला)

सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा॥

(जो भव भय भंजन =जो संसारके (जन्ममृत्युके) भयका नाश करने वाले) (मुनि मन रंजन =मुनियों के मन को आनन्द देने वाले और) (गंजन बिपति बरूथा = विपत्तियों के समूह को नष्ट करनेवाले हैं)

(बरूथा-गिरोह, समूह दल,बादल,तोदाह,ढेर)  (गंजन=तिरस्कार,अवज्ञा,दुर्दशा,दुर्गति,नष्ट नष्ट करने वाला)  (रंजन=मन प्रसन्न करनेवाला)

जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा।

मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी= हम सब देवताओंके समूह मन, वचन और कर्म से चतुराई छोड्कर) (सरन सकल सुर जूथा =उन भगवान की शरण आये हैं (जूथा=झुंड,जत्था)

मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुरजूथा॥

(सारद श्रुति सेषा = सरस्वती, वेद, शेषजी और) (रिषय असेषा =सम्पूर्ण ऋषि) (जा कहुँ कोउ नहि जाना =कोई भी जिनको नहीं जानते)।

सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहिं जाना।

(जेहि दीन पिआरे = जिन्हें दीन प्रिय हैं) (बेद पुकारे =ऐसा वेद पुकार कर कहते हैं)(द्रवउ सो श्रीभगवाना =वे ही श्री भगवान् हमपर दया करें)

जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना॥

(भव बारिधि मंदर= हे संसार रूपी समुद्र के (मथनेके) लिये मन्दराचलरूप) (सब बिधि सुंदर= सब प्रकार से सुन्दर) (गुनमंदिर= गुणों के धाम) (सुखपुंजा= सुखोंकी राशि) (बारिधि=समुद्र,जलपात्र)

(मंदर=एक पर्वत जिससे देवताओं और असुरों ने समुद्र का मंथन किया था=मन्दराचल)

भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा।

मुनि सिद्ध सकल, सुर परम भयातुर – नाथ! आपके चरण कमलों में मुनि, सिद्ध और।नमत नाथ पद कंजा – सारे देवता भय से अत्यन्त व्याकुल होकर नमस्कार करते हैं  (भयातुर=भयभीत) 

मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा॥

नारायण को  पुकार का भाव यह  कि जब जब-जब देवताओंको दुःख होता है तब-तब वे संकट दूर करते है बाबा तुलसी ने कहा-

जब जब नाथ सुरन्ह दुखु पायो। नाना तनु धरि तुम्हइँ नसायो॥

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Mahender Upadhyay

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