श्री लक्ष्मण जी ने जो अनुमान किया था,वही बात मानकर प्रभु ने भी संभवतः मुझे भुला दिया हो ।लक्ष्मण जी का मत कुटिल भाई भरत (अनेकों) प्रकार की कुटिलताएँ रचकर सेना बटोरकर दोनों भाई भरत और शत्रुघन आए हैं।यदि इनके हृदय में कपट और कुचाल न होती, तो रथ, घोड़े और हाथियों की कतार (ऐसे समय) किसे सुहाती ?
परंतु भरत को ही व्यर्थ कौन दोष दे? (सूत्र) राजपद पा जाने पर सारा जगत ही पागल (मतवाला) हो जाता है।अर्थात इस संसार में ऐसा कोई नहीं है जिसको प्रभुता पाकर (घमंड=अभिमान) न हुआ हो।
पर में तो मेरे रामजी का स्वाभाव तो में जनता हूँ! (कोह=क्रोध,गुस्सा)
भरतजी जैसा संत कह रहा कि-अवधि बीत जाने पर यदि मेरे प्राण रह गए तो जगत् में मेरे समान नीच कौन होगा? मेरी प्रतिज्ञा भूलने योग्य नहीं थी। क्या सरकार ने मुझे कुटिल समझकर उस प्रतिज्ञा को दम्भ मात्र समझा ।इसलिए मुझे भुला दिया? सरकार के वनवास की अवधि और अवधवासियों के जीवन की अवधि एक ही है। अयोध्या वासियों के विषम वियोग की दशा का वर्णन नहीं किया जा सकता।अयोध्या वासियों ने (चौदह साल की) अवधि की आशा से ही वे प्राणों को रख रहे हैं।
अहा! लक्ष्मण बड़े धन्य एवं बड़भागी हैं; जो श्रीरामचन्द्रजी के चरणारविन्द के प्रेमी हैं(अर्थात् उनसे अलग नहीं हुए)। मुझे तो प्रभु ने कपटी और कुटिल पहचान लिया, इसी से नाथ ने मुझे साथ नहीं लिया!
भरतजी=मेरे समान पापों का घर कौन होगा, जिसके कारण सीताजी और श्री रामजी का वनवास हुआ?और मैं दुष्ट, जो अनर्थों का कारण हूँ, होश-हवास में बैठा सब बातें सुन रहा हूँ।
यह भक्ति की कार्पण्य वृति है यथाः
अथवा इसी वृति में अपनी उस करनी का भी स्मरण करते है हनुमानजी को संजीवनी ले जाते समय बाण मारा था। अगर हनुमान जीवित नहीं होते तो कोई भी जीवित ना होता अतः भरत जैसा संत बोल रहा है कि मेरी इस करनी को समझे तो करोडो कल्पो तक मेरा निर्बाह नहीं हो सकता जन अवगुन। का भाव वे दीनबन्ध है और में दीन हूँ,तो अवश्य कृपा करेंगे यथाः
अति मृदुल सुभाऊ। का भाव प्रभु तो अति कोमल स्वाभाव के है अतः मुझ पर क्रोध ना कर के दया ही करेंगे ऐसा कहकर उपर्युक्त “कपटी कुटिल मोहि “का निराकरण किया पहले भी इन्होने कहा था। यथाः
पर में तो मेरे प्रभु का स्वाभाव जनता हूँ कि वे अपने सेवक का अवगुण कभी नहीं मानते। वे दीनबंधु हैं और अत्यंत ही कोमल स्वभाव के हैं! राम जी तो बिना कारण के ही कृपा करते है!
संत-असंत वंदना जितनी वन्दना मानस में बाबा तुलसी ने की उतनी वंदना किसी दूसरे ग्रंथ… Read More
जिमि जिमि तापसु कथइ अवतार के हेतु, प्रतापभानु साधारण धर्म में भले ही रत… Read More
बिस्व बिदित एक कैकय अवतार के हेतु, फल की आशा को त्याग कर कर्म करते… Read More
स्वायंभू मनु अरु अवतार के हेतु,ब्रह्म अवतार की विशेषता यह है कि इसमें रघुवीरजी ने… Read More
सुमिरत हरिहि श्राप गति अवतार के हेतु, कैलाश पर्वत तो पूरा ही पावन है पर… Read More
अवतार के हेतु, भगवान को वृन्दा और नारद जी ने करीब करीब एक सा… Read More