रामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास द्वारा 16वीं शताब्दी में रचित एक महान ग्रंथ है, जिसे अवधी भाषा में लिखा गया है। यह ग्रंथ भगवान राम के चरित्र, आदर्शों और जीवन की दिव्य कथा का वर्णन करता है। यह मूलतः महर्षि वाल्मीकि रचित संस्कृत रामायण पर आधारित है, परंतु तुलसीदासजी ने इसे भक्ति-रस और जनभाषा में रचकर जनसामान्य के लिए सुलभ बनाया।
अवध प्रभाव जान तब प्राणी। किस कारण अयोध्या को विश्व का मस्तक कहा गया है। वेद और उपनिषदों में श्री… Read More
सुमिरत हरिहि श्राप गति अवतार के हेतु, कैलाश पर्वत तो पूरा ही पावन है पर जहाँ जहाँ गंगा जी बहती… Read More
तेहिं तपु कीन्ह संभु पार्वती विवाह-देवताओं ने ब्रह्मा जी से कहा की आपने ऐसा वरदान क्यों दिया ? ब्रह्मा जी… Read More
केहि बिधि अस्तुति करौं तुम्हारी। संत जन कहते है संसार सागर को पार करने का सबसे सरल उपाय कोई है… Read More
रे त्रिय चोर कुमारग गामी। रावण का माता जानकी को सुमुखि कहने का भाव यह है कि मैं तुम्हारे सुन्दर… Read More
तेहि कौतुक कर मरमु न काहूँ। काकभुशुण्डि हे पक्षीराज! मुझे यहाँ निवास करते सत्ताईस कल्प बीत गए, संत का मत… Read More
देखि देखि आचरन तुम्हारा। वशिष्ठ जी कहते है- ब्रह्मा जी के कहने पर मैंने उपरोहित्य अर्थात ब्राह्मण का कर्म द्वारा… Read More
जब तें सती जाइ तनु त्यागा। पार्वती विवाह3- सती के साथ कैलाश पर नित्य कथा होती थी उनके ना रहने… Read More
रचि महेस निज मानस राखा। तुलसी ने मानस सरोवर की तुलना सामान्य सरोवर से कि है जैसे तलाब में प्रायः… Read More
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। हनुमान जी ने अपना विप्र रूप का वेष रखकर राम जी से पूछा- हे सावले… Read More