कर्म कमण्डल कर गहे,तुलसी जहँ लग जाय।सरिता, सागर, कूप जल
रघुबंसिन्ह कर सहज सुभाऊ। मनु कुपंथ पगु धरइ न काऊ॥
श्री रामचन्द्रजी भाई लक्ष्मण से बोले– जिसकी अलौकिक सुंदरता देखकर स्वभाव से ही मेरा पवित्र मन क्षुब्ध हो गया है। वह सब कारण (अथवा उसका सब कारण) तो विधाता जानें, किन्तु हे भाई! सुनो, मेरे मंगलदायक (दाहिने) अंग फड़क रहे है। अलौकिक का भाव त्रिलोक में न कोई सीता के समान है और त्रिलोक में सीताजी की उपमा भी किसी से नहीं की जा सकती है। (अलौकिक= अनूठी, अप्राकृतिक) (छोभा=विचलित होना) (सुभद= शुभदायक,मंगलसूचक)
सो सबु कारन! रामजी ने ही नहीं कहा शंकर जी और कौसिल्या जी ने भी यही कहा
यही गुरु वसिष्ठ ने भरत जी से और देव रिषि नारद ने हिमांचल जी से कहा है।
(सूत्र) प्रभु की इच्छा को ना तो कोई जान सका और ना ही कोई जान सकता है।
बंदों अवधपुरी आति पावनि। सरयू का साधारण अर्थ स से सीता रा से राम जू… Read More
अवध प्रभाव जान तब प्राणी। किस कारण अयोध्या को विश्व का मस्तक कहा गया है।… Read More
संत-असंत वंदना जितनी वन्दना मानस में बाबा तुलसी ने की उतनी वंदना किसी दूसरे ग्रंथ… Read More
जिमि जिमि तापसु कथइ अवतार के हेतु, प्रतापभानु साधारण धर्म में भले ही रत रहा… Read More
बिस्व बिदित एक कैकय अवतार के हेतु, फल की आशा को त्याग कर कर्म करते… Read More
स्वायंभू मनु अरु अवतार के हेतु,ब्रह्म अवतार की विशेषता यह है कि इसमें रघुवीरजी ने… Read More